Saturday, February 20, 2016

गीत नाद, मिथिलाक धरोहर.

जेना विन्ध्य सॅ दक्षिण दिसक भारत, बाहरी आक्रमण सॅ बचैत अपन संस्कृति बचा के रखै मे सफल होइत रहल तहिना देशक एक कोन मे, गण्डकी, कमला आओर कोशीक भूमि सेहो काफी हद तक बाहरी आक्रमण सॅ बचैत रहल आओर मिथिलाक संस्कृति विकसित होइत रहल। हमरा लोकनिक मिथिलाक संस्कृति कतेक विकसित आओर उत्कृष्ट झल वा अछि तेकर चर्चा की करू। मुदा आजुक युग मे अपेक्षित अछि जे अपन उत्कृष्ट संस्कृतिक बेर बेर स्मरण करी आओर मिथिले टा नहि, देशे टा नहि, अपितु संपूर्ण विश्व के अपन कला संस्कृति आओर विद्या वैशिष्ट्य सॅ अवगत कराबी।
अपन सभक संस्कृतिक कतेको आयाम अछि, आ से एक सॅ बढ़ि के एक। आइ हम एक विशिष्ट आयाम दिस अपने सभक ध्यान आकृष्ट करए चाहैत छी जे एखन धरि प्रायः विस्मरित रहि गेल अछि आओर लुप्तप्राय अछि।
                हमरा लोकनि जखन नेना छलहुं तखन मातामही पितामही वर्गक स्त्रीगण के विभिन्न अवसर पर एक विशेष प्रकारक गीत गबैत सुनियनि जे आब प्रायः सुनबा मे नहि अबैत अछि। ओ गीत सभ तेना रेघा रेघा के गाओल जाइ जे ने ओकर लय आ ने ओकर कोनो शब्दे स्पष्ट बुझियैक। मुदा एक प्रकारक धुन जेकरा ओ लोकनि भास कहथिन से अबस्से सुस्पष्ट बुझना जाइक। कालांतर मे ओ गीत गेनिहार सभ तऽ विलुप्त भइए गेलीह, ओ राग भास सेहो विलुप्त होमए लागल। माए पितिआइन लोकनि फिल्मी गीतक धुन पर मैथिली कवित्त गाबऽ लगलीह। पहिलुका गीत-नाद वा बेर-कालक गीत हमरा लोकनि बिसरैत चलि गेलहुं। मुदा ओइ पहिलुका बेर-कालक गीत-नाद मे हमर सभक प्रखर संस्कृतिक एक विलक्षण आयाम नुकाएल अछि। तत्कालीन मैथिली जन-जीवन, जीवन-चर्या आओर मनःस्थितिक साहित्यिक अभिव्यक्ति सॅ भरल कवित्तक विलक्षण भंडार अछि।
                मिथिला मे पारंपरिक गायन कहिया आरंभ भेल से तऽ नहि जानि मुदा महाकवि विद्यापतिक काल मे पूर्ण विकसित एवं समृद्ध छल से निश्चित रूप सॅ कहल जा सकैत अछि। मुख्यतः स्त्रीगणे गीत गबैत रहलीह आओर नवीन पीढ़ी के सिखबैत रहलीह। माए बेटी के आओर सासु पुतहु के सिखबैत रहलीह। प्रायः जेना प्राचीन वेद सभ श्रुति द्वारा प्राप्त भेल अछि तहिना इ गीतक धरोहरि हमरा लोकनि के भेटल अछि। एतेक काल मे, पीढ़ी दर पीढ़ी, अबैत अबैत, गीतक मूल रूप किछु ओझरेलैक अवश्य, मुदा हेरेलैक नहि तेकर संपूर्ण श्रेय हमरा लोकनिक पूर्वजा सभ के। धन्य ओ लोकनि जे आइयो ओ गीत सभ गेय अछि। आवश्यकता छल जे केओ अइ गीत सभक छिड़िआएल धुन, सुर, आओर लय के सरियाबथि आओर कोन ताल मे बद्ध छल होएत तेकर खोज करथि।
हमर माए, पितामही आओर मातामही गीत गबै मे निष्णात छलीह। हमर जेठ बहिन श्रीमती भारती झा,  प्रायः सभ अवसरक गीत गबैत छथि। हमर कालेजक पढ़ाइ हिनकहि लग रहि के पूरा भेल आओर सन्निकट रहैत-रहैत हमहू किछु गाबए गुनगुनाबए लगलहुं। बाद मे अपन जेठ पित्ती स्वनाम धन्य राजकुमार श्यामानंद सिंह सॅ शास्त्रीय संगीतक शिक्षा दीक्षा लेलहुं जे गीत-नादक शोध-कार्य मे बड़ सहायक सिद्ध भेल। अपन माए आओर सोदरा सॅ प्रेरणा, आओर छोट गुरु-भाइ चि0 अमर नाथ झा सॅ सहयोगक आश्वासन पाबि, हम सन् 2005 सॅ एहि दुरूह कार्य मे भिड़लहुं। कार्य अति दुष्कर छल आओर मांगलिक-सामयिक गीतक भंडार विशाल।
आइ ओ गीत सभ जेना गाओल जाइत अछि ताहि सॅ अनुमान करब कठिन अछि जे कहियो इ तालबद्ध छल आओर, से तेहेन तेहेन ताल मे गाओल जाइत छल जे आइ शास्त्रीयो गायन मे कम प्रयुक्त अछि। जेना रूद्र-ताल, तेवड़ा, आड़ा-चैताला आदि। अनुमान करू जे ओ संस्कृति केहेन विकसित छल होएत जाहि मे गाम-घरक स्त्रीगण नित्य जीवन मे एहेन एहेन कठिन स्वर-ताल मे गबैत छलीह।
महाकवि विद्यापति, साहेबराम दास, उमापति, महीपति, गोविंद-कवि, विन्ध्यनाथ झा, लक्ष्मीपति, दुर्गादत्त, प्रभृति महापुरुष लोकनिक उत्कृष्ट कवित्त सभ एकत्रित करब जेहेन चुनौती छल, तहिना चुनौती छल ओहि गेय कवित्तक धुन-भास बुझि के सीखब आओर संकलित करब। पहिनहिं कहि चुकल छी जे ओ गीत सभ आब प्रायः नहि गाओल जाइत अछि। कम्मे लोक बचल छथि जिनका एखनहुं ओ रेघा रेघा के गबै बला गीत अबै छनि। आओर गाम घर मे जिनका अबै छनि हुनका लग पहुंचि के गीत सिखनाइ जेहने अकथ्य तेहने हास्यास्पदो। एहन विकट परिस्थिति मे मात्रा बहिन, भाउज, मामी, मौसी, पीसि, काकी सन संबंधिके टा सहायक भेलीह। हमर बहिन श्रीमती भारती झा, स्वर्गीया माँ रानी सती देवी, आओर मामी स्वर्गीया कामा देवी विशेष रूप सॅ मदति केलनि। मैथिली पारंपरिक गीत कए मुख्यतः चारि विभाग मे बाँटि सकैत छी। मांगलिक, सामयिक, अवसरक एवे तिरहुति। मांगलिकक अंतर्गत भगवती एवं देवताक स्तुति-गीत, विवाहक गीत इत्यादि। सामयिकक अंतर्गत साँझ, प्रातीय, मलार, बारहमासा इत्यादि। अवसरक अंतर्गत लगनी, सामा-चकेवा, सोहर इत्यादि। तिरहुतिक अंतर्गत बटगमनी, रास, गोआलरि इत्यादि।
जखन किछु गीत संकलित एवं सीखल भेल तखन ओकर लय सरिआबए मे भिड़लहुं। एहि बात पर विशेष ध्यान रखबाक छल जे लए सरिआबैक क्रम मे गीतक मूल राग-भासक संग कोनो छेड़खानी नहि हो।
लय सरिया जेबाक बाद लयानुयार उपयुक्त ताल तकबाक छल जे एहि काजक सभ सॅ विकट चुनौती छल। गीतक धुन आओर पदक शैलीक अनुरूप ताल बैसौनाइ वास्तव मे दुष्कर छल। एतेक काल मे, पीढ़ी दर पीढ़ी, अबैत अबैत, गीतक मूल रूप मे गोटएक मात्रा एक्हर ओम्हर भेनाइ तऽ स्वाभाविके छलैक मुदा वएह गोटएक मात्राक अंतर हमरा लोकनिक दाँत खट्टा कऽ देलक। कएक बेर, मास-मास तक हमर छोट गुरु भाइ श्री अमर नाथ झाक संग हम एक्कहि गीत मे बाझल रहि जाइत छलहुं। एहि परीक्षाक घड़ी मे गुरु श्यामानंद सिंहक तालीमे टा काज देलक। जेना जेना ओहि प्राचीन गीत सभक ताल भेटैत गेल तेना तेना अचंभित होइत रहलहुं। बेर बेर पुर्वजा मिथिलानी सभ के सादर नमन करी। कोनो गीत तेवड़ा मे तऽ कोनो आड़ा चैताल सन कम प्रचलित ताल मे बान्हल छल। ओ संस्कृति केहेन विकसित छल होएत, हमरा लोकनिक समाजक स्त्रीगण कतेक सुशिक्षित छल होइतीह, जे नित्य जीवन मे एहेन एहेन कठिन स्वर-ताल मे गबैत जाइ छलीह।
अस्तु, आब एकटा मेधाविनी शिष्याक तलाश मे लगलहुं जिनक माध्यम सॅ एहि शोध-कार्यक बानगी अपने सभक समक्ष प्रस्तुत कऽ सकी। सुश्री शैली हमर गुरु-भाइ अमर जी सॅ शास्त्रीय गायनक विधिवत तालीम पौने छथि। वएह आब हमरो शिष्या बनि पारंपरिक गीत-नादक महासमुद्र मे डुबकी लगबऽ लगलीह। एक एक कऽ के चुनल चुनल गीत सिखलनि आ से बड़ मनोयोग सॅ सिखलनि।
किछु मांगलिक आओर सामयिक गीतक द्वारा, शैली अपने लोकनिक समक्ष माँ मैथिलीक समृद्ध कला-संस्कृतिक एक नव आयामक झलक प्रस्तुत करतीह। प्रयास अछि जे मैथिली पारंपरिक गीतक विलक्षण भंडार मे सॅ प्रत्येक विधाक किछुओ वस्तु ओकर मूल रूप मे सुर, लय आओर तालक संग सुधी श्रोताक समक्ष राखि सकी। लक्ष्य रहत जे मिथिलाक अनमोल संस्कृतिक इ धरोहरि के सहेज के विश्वक समक्ष प्रस्तुत करी।

जय मैथिली। 
सीडी के लोकार्पण पद्मश्री गजेन्द्र नारायण सिंहजीक द्वारा पटना में आयोजित मैथिलि लिटरेचर फेस्टिवल में १२.२.२०१६ के संपन्न भेल. चित्र में - श्री तारानंद वियोगी, प्रो रत्नेश्वर मिश्र, पद्मश्री गजेन्द्र नारायण सिंह, शोधकर्ता गिरिजानंद सिंह, श्रीमती भारती झा, सह-निर्देशक अमरनाथ झा, एवं गायिका शैली लोकार्पण करैत