मिथिला के पूर्णिया में, बनैली राज की चंपानगर शाखा के ऑनरेबल राजा बहादुर कीर्त्यानन्द सिंहजी। जन्म-१८८३, मृत्यु-१९३८। इन्होने अपने शिकार के अनुभवों पर दो किताबें अंग्रेजी में लिखीं ' पूर्णिया अ शिकार लैंड ' और 'शिकार इन हिल्स एंड जन्गल्स' . १९०६ इसवी में ' द बिहारी ' नामक पहला प्रादेशिक अंग्रेजी समाचार पत्र के प्रकाशन में इनकी प्रमुख भूमिका थी । यही बाद में 'द सर्चलाइट' कहलाया । एक लम्बे समय तक वे बिहारोत्कल संस्कृत समिति के अध्यक्ष रहे। अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष रहे। पटना का हिंदी साहित्य सम्मलेन भवन उन्ही की देन है। १९३४ के महा भूकम्प में जब पूर्णिया का जिला स्कूल भवन क्षतिग्रस्त हो गया तब उन्हों ने अपनी भूमि दान में दे कर नया जिला जिला स्कूल भवन बनवाया। १९१७-१८ में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति आशुतोष मुख़र्जी ने शर्त रखा कि अगर तीन दिन के भीतर २५०० रुपयों का इंतज़ाम हो तो वे मैथिली को पाठ्यक्रम मे शामिल कर लेंगे। कीर्त्यानन्द सिंह ने मैथिली की सेवा करने मे अपना सौभाग्य समझ कर तुरंत २५०० दिये और अपनी तरफ से ७५०० रुपये अतिरिक्त भेजे। इस प्रकार कलकत्ता विश्वविद्यालय में एम ए तक मैथिली पाठ्यक्रम को शामिल किया गया। १९१९ ईस्वी में कुमार कालिकानन्द सिंह और राजा कीर्त्यानन्द सिंह ने मिलकर १२०० वार्षिक शुल्क देकर ६ वर्षों के लिए मैथिली लैक्चर स्थापित किया। अफ़सोस की बात है की ऐसे साहित्य सेवक के नाम पर आज पूर्णिया में न कोई सड़क है नहीं कोई चौक। मिथिला अपने अनन्य सेवक को भूल गयी ।
Sunday, September 7, 2014
अक्षयनवमीक भूत
कार्तिक मास मे अक्षयनवमीक दिन, किलाक भीतरी बाड़ी
मे बेस चहल-पहल छलैक। सभ व्यस्त छल। किछु ने किछु काज सभ के छलैक। ई चहल-पहल कोनो
अजुके होइ से बात नहि। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास भरि, राज-परिवारक भानस
अही बाड़ीक मध्य मे अवस्थित धात्रीक गाछ तऽर मे होइत छलैक।
राजमाता के धर्म-कर्म मे बड़ आस्था छलनि। कहल जाइत छलै जे
कार्तिक मास मे धात्रीक पात जखन झड़ऽ लगैत छैक तखन ओहि तऽर मे भानस आओर भोजन करै मे
बड़ धर्म छै। तएँ राजमाता दुर्गेश्वरी देवी एहि पर्व के बड़ निष्ठा सॅ मनबैत छलीह।
रानी लोकनिक हवेलीक पाछू कात मे ऊँच चाहरदिवारी सॅ घेरल ई 'हवेली
बाड़ी' साबिके जमाना सॅ
छल। करीब दू बीघा मे पसरल ई उपवन, सभ दृष्टिकोण सॅ रानीए लोकनि ले बनाओल गेल छलनि। बाड़ी के
छोट-पैघ आयताकार खंड मे बॅटैत, पातर-पातर पक्की सड़कनुमा रस्ता सभ छलै, आओर प्रत्येक खंड
मे कोनो ने कोनो विषिष्ट प्रजातिक फल-फलहरीक गाछ-वृक्ष। विभिन्न गाछ सभ, फलक, फूलक। कतहु
फव्वारा तऽ कतहु छोट छोट पानिक नहर, कमलताल, कुमुदिनीताल,
आओर बाड़ीक बीचोबीच
एक टा छोट छीन पोखरि। अही पोखरिक पूब कात मे एकटा विशाल धात्रीक गाछ, जे आजुक भीड़-भाड़क
केन्द्र-स्थल छल।
चारू कातक घास छील-छालि के गोबर सॅ नीपल गेल छलै। तीनटा
माटिक चूल्हि पर विविध व्यंजन सभ बनाओल जा रहल छलै। दक्षहस्त कुटुम्बिनी लोकनि
व्यंजनपाक मे भिड़ल छलीह आओर सभक उपर सॅ देखरेख करैत छलीह मझिली रानी मनोरमा। ऐहेन
नहि छलै जे सभटा जिम्मेवारी एकसरे मनोरमेक माथ पर छलनि। हवेलीक सभ महत्वपूर्ण
चाभीक गुच्छक मलिकाइन होइतहुं स्वयं मनोरमो पर कठोर नियंत्रण-निगरानी छलनि। जेठि
ननदि सभक आओर ताहू सॅ उपर सासुक।
सासुक आगमन तऽ एखनि नहि भेल छलनि मुदा बेर बेर किछु निर्देष
दऽ के मनोरमा एक बेर जेठि ननदि यशोमाया दिस ताकि लैत छलीह जे गाछक तऽर मे ओछाओल
पटिया पर सॅ बैसले बैसल कहुखन मुखर आदेष आओर कहुखन सहमति मे मुड़ी डोला रहल छलीह।
दुनू ननदि भाउज एकमत सॅ लागल छलीह आजुक आयोजन मे।
भानस तऽ भरि मास एतऽ होइत छलै मुदा अजुके दिन टा, स्वयं राजा साहेब,
अपन भाइ सभक संग
पधारैत छलाह। पधारि के माए आओर धात्री दुनू के कृतार्थ करैत छलाह, ऐँठ खसा के।
कालिकानंदन अग्रज छलाह, तएँ राजा कहाइत
छलाह। तीन टा अनुज छलखिन, शिवनंदन, ईश्वरनंदन,
आओर देवीनंदन।
कुँवर शिवनंदनक स्त्री छलखिन मनोरमा, तएँ 'मझिली रानी'।
बड़ी काल सॅ मनोरमा गुमसुम छलीह, बजलीह
”अए कमलेसरी दाइ, कखनि सॅ पोलावक चाउर-मसाला के सनने जाइछी
! समय के कोनो होस अछि अहाँके ?“
यशोमाया कहलखिन
”एम्हर नेने आउ पोलाव बला अढ़िया, देखियै........भेलै
कि नहि ?.....ठीके ने कहै छथि, एना मे तऽ बड़ अबेर भऽ जाएत, एगारह बजै ले छैक
!............
कनेक रोष देखबैत खवासिन सभ के कहऽ लगलखिन
”तखनि सॅ हम देख रहल छियौक......तोरा लोकनि सॅ काज
करौनाइ......हमरा बुते तऽ पार नहि लागत.......हँ, तों सभ नित्यरमाक
संग रहै जोग छें.....खूब जोड़ी लगतौ...जेहने धिम्मड़ि बौआसिन तेहने धिम्मड़ि खबासिन !’
जेठ देयादिनीक प्रति ननदि केर विशेष अनुकंपा देखि के मनोरमा
के नीक नहि लगलनि। हुनका बड़ प्रीति छलनि नित्यरमा सॅ। मुदा आजुका व्यंगवाणक निसान
पर ओ अपने नहि छलीह, से बुझि के कनेक संतोषे भेलनि। वाणी मे चाटुकारिता अनैत ओ
ननदि के कहलखिन
'बड़की दाइजी.....हमरा मोन होइत छलए जे.......हिनकर हाथक
बनाओल छेनाक बड़ी........केहेन अपूर्व होइ छनि........इएह बनबितथि तऽ सरकार सभक जोग
होइतैक.......नहि तऽ आजुक रंग ढंग सॅ हमरा बड़ चिन्ता भऽ रहल अछि.......नहि
नहि....ई बस कड़छु पकड़ि लेथु......बाँकी सभटा तऽ हम कइये देबनि ने '
तीर सोझे सोझ लगलैक।
'हँ अए मनोरमा रानी, हेतै किएक नहि,.......मुदा हमरा सॅ
बनवाएब तऽऽ................बुझिते छी.....सभ के पहिनहि कहि दियौन......केओ दाइ माइ
लोकनि दखल नहि देथि...........से हम कहि दैत
छी.................................................................................तऽ
एना करू......एकटा छोट सन चूल्हि हमरा लग के दियऽ आओर सभ वस्तु एकट्ठा करू.......हमरो
तऽ कतेक मास भऽ गेल छेनाक बड़ी बनेना....'
खूब प्रसन्न मोन
सॅ हाथक क्रोषियाक सिलाई के कात मे रखैत यशोमाया दाइ छेनाक बड़ी बनेबाक आडंबर मे
लागि गेलीह।
अही बीच मे दूटा
खवासिन आबि के राजमाता, राजा साहेब आओर अन्य लोक सभक लेल बैसबाक आसन-ओछाओन, मसनद-तकिया लगा
गेलेन। राजमाताक विशेष गद्दी-छतरी सेहो लागि गेलेन।
आ तखनि प्रवेष
कएलन्हि राजमाता साहिबा, एक छोट सन काफिलाक संग, आगू आगू हुनक
मुंह-लागल नेपालिन मैनेजर, संदूकची लेने, ब्राह्मणी चर्चाइ जलक
सुराही लेने, तकर बाद राजमाताक पौत्री सभक झुंड, सात टा राजकन्या। तखनि
स्वयं राजामाता, छोटकी बेटी प्रेममायाक संग, पाछू सॅ बौआसिन सभ,
आओर कतेको
स्त्रीगण......... कुटुम्बिनी लोकनि...........
प्रेममायाक कान्ह
पर एकटा हाथ टिकौने, सोझे आबि के भानसक निरीक्षण करऽ लगलीह राजमाता, प्रश्नक बौछार लगा देलखिन, की की बनि चुकल छैक ? की सभ चूल्हि पर
चढ़ल छैक आ की बाँकी छैक ?...............के सभ भानस मे लागल छथि ? के सभ हुच्ची मे
छथि आओर के अनुपस्थित छथि ?...................................आओर अनुपस्थित
लोकक सूची मे चर्चा भेलैन्ह जेठि रानी नित्यरमाक। राजमाताक भृकुटी संकुचित भऽ
गेलैन्ह, पुछलखिन
'आ नित्यरमा ?'
'आइ अबेर भऽ गेलनि' मनोरमा नहुंये
नहुंये कहलखिन
'अबेर ?' राजमाताक स्वर
कठोर लगलनि मनोरमा के
'ककरो पठबैत छियैक.....गे अमेलिया.... जो तऽ..... देखहुन त
कियेक देरी भेलनि बहिनदाइ के ?' कनेक सहमि के
मनोरमा बजलीह आओर अमेलिया के दौड़ा देलखिन।
राजमाता मसनद सॅ ओंगठि के बैसि रहलीह, स्त्रीगण लोकनि
काज करऽ लगलीह। मुदा एक तरहक चुप्पी व्याप्त भ गेलैक। सभ केओ कनेक सावधान भऽ गेल।
अहिना होइ छलैक सदिखन। राजमाता र्दुर्गेश्वरी देवीक
व्यक्तित्वे तहिने छलनि। अहू अधेड़ अवस्था मे शरीर एकदम सोंटल, एकोटा केष पाकल
नहि, पातर-ठोर, पातर नाक, आओर चमकैत आँखि। जेम्हरे देखैत छलीह एक अद्भुत प्रभाव पड़ैत
छलैक। लोक सहमि जाइत छल। वैधव्य मे ओ शरीर के तप सॅ साधि लेने छलीह, मुदा बजै छलीह बड़
मधुर।
ओ ताड़ि गेलीह जे सभ चुप भऽ गेलैक। बड़ आवेश सॅ मनोरमा के
पुछलखिन
'आइ केहेन मोन अछि? दवाइ खा रहल छी ने नियमित ?'
'जी, आब तऽ एकदम ठीक छियैक' उत्तर भेटलनि।
तकर बाद आन स्त्रीगण सभ दिस ध्यान देलखिन। पुछलखिन
'आइ दमयन्ती दाइ बेस ठोप काजर केने छथि, ओझा गाम सॅ घुरि
एलखिन की ?'
समौलवाली के नहि रहि भेलेन। ओ खी-खी-खी कऽ के तेना हॅसऽ
लगली जे दमयंती दाइ लाजे कठुआ गेलीह। दुर्गेश्वरी के हंसी लागि गेलन्हि। बजलीह
'ओना नइ कचकचबै जइयौन्ह...........अइ बयेस मे नहि सिंगार
पटार करती तऽ कहिया करतीह'
एखनि धरि यशोमाया छेनाक बड़ी मे व्यस्त छलीह। आब माथ उठा के
व्यांगात्मक हंसी हंसैत बाजि उठलीह
“किछु कहू केओ, मुदा अहाँक राजलक्ष्मी बड़की पुतोहु सन ने
केओ सिंगार करैत होयत आओर ने केकरो ओहेन मंद गति हेतैक। बोली तेहन मंद जे कानो लगा
के सुनि ली त कृतार्थ भऽ जाइ, आओर चलनाइ एहेन आस्ते जे पाँच मिनटक रास्ता हुनका बुते आधो
घंटा मे पार नइ लगैत छनि..... आओर व्यवस्था ?..................केकरा नहि बुझल
छैक जे आइ एतऽ की आयोजन छैक............. मुदा नित्यरमा के कोनो सुधि छनि ?.......
देखब जे अमेलिया
आबि के की कहै ए .........कहत....... 'बड़की रानी तैयार होइत छथिन, एनाक आगू मे बैसल
छथिन'
ठीक तखनहि अमेलिया आबि के सूचना देलकनि
'बड़की रानी तैयार होइत छथिन, एनाक आगू मे बैसल
छथिन, ओइठाम तऽ..................' यषोमाया हंसैत हंसैत दोबरि भ गेलीह। आनो लोक सभ मुंह झांपि
के हंसऽ लागल। एहेन बुझना गेलैक जेना राजमातो के हंसी लागि गेलैन्ह मुदा ओ नहि
हंसलीह। अमेलिया के पूछलखिन
'की गे, आगू कह.............. चुप कियेक भऽ गेलें ?'
अमेलिया पहिने
कनेक डरि के यशोमाया दाइ दिस तकलक। फेर आश्वस्त भऽ के बाजऽ लागल
'जी! असल मे बड़की रानी के जड़ाउ झुमका हेरा गेलनि ऐ। पूरे हवेली मे हंगामा मचल छैक।
मुनरी कहै छनि जे ओ आइ भिनसरे एना वला टेबुल पर रखने छलीह। ओतहि सऽ पार भऽ
गेलैन्ह। केओ उठा लेलकै। केओ के उठेतैक? सभ देखलकै पलटीक माए के अपन पौती में
किहु रखैत। मुदा ओ नहि गछलकै। तएँ पलटी के मारि लगलै। मुनरी आ रंगिया मिल के खूब
ओंधड़ा ओंधड़ा के पिटलकै। तैयो नइ गछलकै। मुदा जहिना बड़की रानी एक हंटर लगौलखिन,
झुमका आनि के पएर
पर धऽ देलकनि.... बापरे बाप........पलटी दर्दक मारे खूब चिचिया रहल छैक.......
सौंसे देह पर मारि के लाल लाल दाग..........“ बीचहि मे यशोमाया
टोकि बैसलखिन
'की ? की ? .......एक बेर फेर कह तऽ......हंटर ? हंटर घुमाबऽ जनै
छथि नित्यरमा ? हुनकर हंटरो तऽ फूले जेकाँ लगैत हेतैक। आष्चर्य! नित्यरमा
आओर हंटर ?'
यशोमायाक उक्ति
कोनो गलत नहि भेल छलन्हि। नित्यरमा आओर हंटर-चाबुक, दुनू में कोनो
मेले नहि, कोनादन बुझाइत छलैक। नित्यरमा बड़ आलसी छलीह, बड़ सुस्त। भरि-भरि
दिन ओछाओन पर पड़ल रहनाइ, खवासिन सभ सॅ देह जॅतौनाइ, मालिस करौनाइ,
गप्प हंकनाइ,
घंटो सिंगार करनाइ,
सुतनाइ, इयेह हुनक
दिनचर्या छलनि। अही धिम्मड़ि गति सॅ अकच्छ भऽ के, रनिवासक चाभी सभ
हुनका सॅ छोट मनोरमा केँ सौंपि देने छलखिन राजमाता।
मुदा राजा पर
नित्यरमाक बड़ प्रभाव छलनि। रूप और भानसक प्रभाव । नित्यरमा अनिन्द्यसुंदरी छलीह।
ताहि पर नित्य अनूप सिंगार, आओर नव सुस्वादु भोजनक विन्यास ओ बड़ जतन सॅ करैत छलीह।
राजकाज में, कतबहु व्यस्त होथु, रातुका भोजन आओर विश्राम, नित्य, नित्यरमेक हवेली
में करैत छलाह कालिकानंदन।
'मइयाँ जी! मइयाँ जी! हमरा लोकनि पोखरि मे नहाइ ले जाउ ?'
राजमाताक ध्यान
अपन जेठ पौत्री ऐश्वर्य दिस गेलैन्ह। बजलीह
'अइ मास में पोखरि
मे नहाएब ?......... बेस.....जाउ .........मुदा बेसी काल पानि मे नइ रहै जाएब
नहि तऽ सर्दी बोखार हएत '
राजकन्या लोकनि
प्रसन्न भ के पोखरि मे उतरि गेलीह। हंसी, किलकारी सॅ वातावरण भरि गेलैक।
ठीक बारह बजे,
किछु विषिश्ट
कुटुम्ब, अनुज आओर अनुज-पुत्रक समूहक संग, राजा कलिकानंदन एलाह आओर आबि के माए के
प्रणाम केलखिन। राजमाता संभरि के बैसलीह आओर बौआसिन लोकनि घोघ काढ़ि के कात भऽ
गेलीह। सभ सॅ कुशल क्षेम पूछि के बैसऽ ले कहलखिन राजमाता। सभ बैसैत गेलाह।
ओम्हर, पोखरि मे भरि
इच्छा उधम मचबैक बाद राजकन्या सभक झुंड कोनो खेल मे लगले छलैक कि एम्हर सॅ कुमर
लोकनि पहुंचि गेलखिन। नुक्का-चोरी होमऽ लगलैक।
बाड़ी मे कतेको
हरिन, मजूर आओर चिड़इ सभ पोसल छलैक। ओ सभ, लोकक भीड़-भाड़ सॅ डरा के गाछ वृक्ष मे
नुकाएल छल। मुदा आब ओतऽ बच्चा सभ नुकाए लगलै। तएँ ओ सभ एम्हर ओम्हर भागऽ लागल। बेस
चहल पहल मचि गेलै।
राजा कालिकानंदन
बाड़ीक सुव्यवस्था सॅ बेष प्रभावित भेलाह। बजलाह
”वाह! बाड़ी तऽ खूब सुंदर लागि रहल अछि। गेना आओर गुलाब मे तऽ
एखनहि सॅ कोंढ़ी निकलि रहल अछि। वयेह बुढ़िया मालिन अछि ने? ओकरा इनाम दियौक।
ओ जीत गेल अइ साल।’
दुर्गेश्वरी मुसकि के उत्तर देलखिन
'से तऽ ठीके कहैत छी........मुदा आब ओकरा बुतेँ काज नहि कएल
होइ छै। बड़ बयेस भेलै किने, तएँ सोचैत छी जे ओकर बेटी के राखि ली। बुढ़िया के आरामो भऽ
जेतै आओर पेटो भरतैक। उपर सॅ पेन्षनो तऽ रहबे करतै।’
कालिकानंदन बजलाह
'फेर सोचि लियऽ माँ! अगिला साल सॅ हमरे माली सभ जीत जाएत।’
आब छेनाक बड़ी सॅ संतुष्ट भऽ के यशोमाया तौलिया सॅ हाथ पोछैत
भाइ सॅ पुछलखिन
'सुनै छी जे आइ दरबार मे बड़ आनंद रहलैक....हम तऽ अइ मनोरमा
रानी के फेर मे पड़ि के ओम्हर जाइए नहि सकलहुं....ठीके मूर्खराज आएल छैक ?’
'सएह तऽ.....! शिवनंदन बाजि उठलाह
'हम सभ ओकरे विषय मे गप्प कऽ के हंसैत आबि रहल छी! अबितहि
रंग जमा देलकै ! खूब हॅसौलकै.........भाइजी तऽ...जहिया सॅ गद्दी पर बैसलाह ए,
हॅसनाइ एकदम्मे
बंद कऽ देने छथिन। कतबो हॅसबियौन, बस मुसकि देताह। हमरा सक तऽ नहि होएत। हमरा तऽ हॅसैत हॅसैत
जान निकलि गेल ! वाह ! की विलक्षण नाम छैक...मूर्खराज !’
राजा फेर मुसकि रहलाह। से देखि कुँवर देवीनंदन माए के कहऽ
लगलखिन
'देखियौन्ह ने माँ, एखनहु बस मुस्काइये रहल छथि
भाइजी....अहीं कहियौन्ह ने....एतऽ कोन दरबार लागल छैक ?’
'से कियेक ? एत्तहु तऽ माँ के दरबार लगले छन्हि, आओर हम हंसि तऽ
रहल छी....अहाँ सभ तऽ.............अहिना...........’
कहैत देवीनंदनक गऽर मे बाँहि दऽ के जोर सॅ हॅसि उठलाह
कालिकानंदन। बजलाह
'वास्तव मे अद्भुत छैक मूर्खराज। माथ पर फाटल जूताक मुकुट,
दुनू हाथ सॅ एकटा
नाम्ह सन सजमनि तेना पकड़ने छलैक जेना ओ सजमनि नहि, राजदंड हो। कान्ह
पर सॅ, पाछू नीचाँ तक लटकल एकटा फाटल चीटल चद्दरि जेकर छोर ओकर कुकुरक मुँह मे !
अबितहिं सभ के आशीष देलकै
'कल्याण हो.....कल्याण हो ' ठीक बुझना गेलै
जेना राजा भूपनारायण होथि। ओहिना एक दिस झुकैत चालि, वयेह स्त्रैण कंठ,
वयेह बजैक ढंग,
अद्भुत !’
मूर्खराज राजविदूषक छल। हॅसबै बला। लोकबेद के हॅसा के धन
कमेनाइ ओकर काजे छलैक। मुदा ओ ककरो सॅ बान्हल नहि छल। ओकर क्षेत्र बड़ विस्तृत
छलैक। छोट पैघ सभ राज-रजवाड़ा मे ओकर पैठ छलैक। राजकाजक व्यस्तता आओर गंभीरताक बीच
अपन हास्य-उपहास, खिस्सा-पिहानी सॅ शीतलताक लहरि उत्पन्न करै मे माहिर छल ओ।
भाँति-भाँति के स्वांग रचैत छल ओ। सभक मुँहलागल छल, तएँ मुँहमांगल धन
कमबैत छल। अइ बेर घुरैत फिरैत, ओ कालीगंज पहुचि गेल छल।
'राजा भूपनारायण के नकल कऽ तऽ रहल अछि मुदा कहियो तऽ ओ
बुझबे करथिन। केओ ने केओ कहिये देतनि। तखनि बुझताह मूर्खराज। सभ बुधियारी घोंसड़ि
जेतन्हि। भविष्य मे शिवगंगा राजक फाटक बंद भऽ जेतनि। आ ताहि संग बंद भऽ जेतनि एकटा
मुख्य पाइ के स्रोत। मूर्खराज महोदय के ई मसखरी बड़ महग पड़तनि।'
सदैव गंभीर रहै बला कुमर ईष्वरनंदन कहलखिन।
शिवनंदन बजलाह 'से ओकरा कोनो परवाहि हेतैक से हमरा नहि
बुझना जाइत अछि। ओहनो ओ शिवगंगा सॅ काफी माल ऐंठ चुकल अछि। परूँकें तऽ शर्त लगा के
दू टा खस्सी के माँसु खा गेलैक आओर बीस बीघा जमीन जीत लेलकनि शिवगंगा बला सॅ।
सावधान रहब भाइजी ! अइ बेर ओ अहूँ सॅ कसि के ओसूल करत।’
'एह ! हम पहिनहिं सॅ सतर्क छी। हम साफ-साफ कहि देलियै कि हम
तोहर जाल मे फंसै बला नहि छियौक। एहेन यदि काबिल छें तऽ हमरा लोकनि चारू भाइ के
ठकि के देखा ! तखनि बुझबहु जे किछु छें।'
कालिकानंदन अपन
चातुर्य पर अपनहिं विहुंसि उठलाह। वातावरण खूब हल्लुक भऽ गेल छलैक। सभ गप-सप मे
लागल छल। विविध व्यंजनक सुगंधि हवा मे उड़ि उड़ि के अबैत छलैक आओर सभक जठराग्नि के
तीव्र सॅ तीव्रतर बना रहल छलैक।
कि तखनहिं पच्छिम कात सॅ किछु हो-हल्ला उठलैक। बच्चा सभक
चिकड़नाइ आओर डराएल सहमल स्वर ! जेना किछु अनहोनी भऽ गेलैक। पोती लोकनिक स्मरण
होइतहिं दुर्गेश्वरी एक्कहि बेर ठाढ़ भऽ गेलीह आओर ओम्हर जाइक लेल उद्यत भेले छलीह
कि दूर सॅ दौड़ि के अबैत ऐश्वर्य पर नजरि गेलनि। ऐश्वर्य आबि के दादी के भरि पाँज
पकड़ि लेलकनि। बदहवासी मे ओकर मुह सॅ बहरेलैक.............'भ्भ्भू ू ू ू
ू.........त !!!!'
पाछू पाछू सभ बच्चा सभ पहंुचि गेलैक। डराएल, भौंचक्क !!
पहिने सभक गिनती भेलैक। सभ आबि गेल छलैक। आब प्रष्नक क्रम
चललैक
'के देखलकै ? की देखलकै ?’
'नहि नहि.........कानू नहि.........कहू ने...........ओना
कानब तऽ हमरा लोकनि कोना बुझबैक..........कहू ने, की भेलैए ?'
कालिकानंदन दुलारि पुचकारि के पूछऽ लगलखिन। ऐश्वर्य कनैत
कनैत छवि दिस इशारा कऽके एक्के साँस मे कहि गेलैक
'छवि देखलकै सभसॅ
पहिने ! फेर हमहूं सभ ! सभ केओ ! बापरौबाप
! हमरा सभके खाइये जइते ! भुतनी छलैक मइयाँ जी ! भुतनी छलै यै !
छवि भागि के अपन
धाय मन्ना के कोरा मे नुका गेल छलए। सभ बहिन मे सभ सॅ छोट छल छवि। ओकर जन्मक साल भीतरहिं
अक्षय जनमि गेल छलैक। तएँ मन्ना पोसने छलैक छवि के। दूध पियेने छलैक। तएँ छवि के
प्राण बसै छलैक मन्ना मे। राजमाताक सातम पौत्री होइक दुआरे छविक महत्व कम छलैक
हवेली मे। मुदा आइ ओकरे महत्व भऽ गेल छलैक। भूत त वयेह देखने छलैक सभ सॅ पहिने !
'हँऽऽ.....सभ सॅ पहिने
हमही देखलियै...तूँति के गाछ छै ने, ओकर बगल मे जे खटक्का दाड़िम छै ने,
ओकर बगल मे जे
बानर बला पिजड़ा छै ने, ओत्तै ठाढ़ छलै ! खूब पैघ छलै ! भूत छलै !’
फेर हल्ला उठलैक।
अइ बेर पूब दिस सॅऽ। नित्यरमा बेहोश भऽ गेल छलीह। दीर्घ प्रतीक्षारत सासु-ननदि
लोकनि के अपन नव केशविन्यास देखेबाक उत्कंठा, बीच सभा मे पति के
रुप-मोहित करबाक अभिलाषा, आओर झुमका हेरेनाइ सॅ भेटनाइ तक के उपाख्यान सुनेबाक
व्यग्रता लेने नित्यरमा आबिये रहल छलीह कि कान मे पड़लनि........भूउउ...त। ठामहि
बेहोश भऽ के खसि पड़लीह। मनोरमा दौड़ि के गेलीह। जलक छींट दऽ दऽके होश मे अनलखिन।
एम्हर फेर छविके
खिस्सा आगू बढ़लैक
’जनैत छी ? एकदम कारी छलैक,
उज्जर नूआ पहिरने
छलै.....धब धब उज्जर ! जेहेन मन्ना के छै ! बापरौ ! केहेन दन मुँह छलै, ठीक जेहेन भूत होइ
छै........एत्तेक टा के नथिया पहिरने छलै
!
’हँ ! हँ ! ऐश्वर्य
के मोन पड़लैक।
’एत्तेक टा के
नथिया ! ठीक जेना काकीजी पहिरैत छथिन, तहू सॅ पैघ........खूब पैघ !
छवि बजैत रहल
’जनैत छी ! भूत जे
छलै ने.........नहि नहि........भुतनी जे छलै ने ? चंदन बहिन के
बजबैत छलै! ”चन्नन चन्नन’’ दू बेर बजौलकै नकिया के!
आब चंदन पुक्की
फाड़िके कान लगलै। डऽर पैस गेलै ओकरा। भुतनी के कोन ठेकान ? ज ओकरा खा
जेतियै.....तखन ? तखन की हेतियै ?
”दुर बताहि,
भूत तूत किछु नहि
होइ छैक। चुप भऽ जो.....नहि कानी....’
देवीनंदन भतीजी के कोर मे उठा लेलखिन। एखनि धरि दुर्गेष्वरी
चुप छलीह। गंभीर भऽ के बजलीह
”किछु तऽ छैक।
छौंड़ी सभ आंखि सॅ देखलकै ए। बच्चा सभ फुसि नहि कहत। पता करु जे की बात छैक। किच्छु
ने किच्छु अवश्य छैक।’
ओ ठीके कहैत
छलखिन। बच्चा सभ ने अबोध छलै, किछु आनो देख के डरा गेल हेतै। मुदा ऐश्वर्य आओर अभय तऽ
बारह तेरह बरखक छलै, ओकरा सभ के तऽ भ्रम नहिये भेल हेतैक।
यशोमाया कतेक काल
धरि एहि कांड सॅ विलग रहितथि। बजलीह
”मोन अछि ? पुरना हवेली में
एक बेर बड़ जोर भूतक उपद्रव भेल छलैक। जखनि ने तखनि पैसाक बरसात होइक ”ठन ठना ठन“। बाद में तऽ पाथर
खसऽ लगलै। आइ एतऽ, तऽ काल्हि ओतऽ, कतेक झाड़ल फूकल गेल! सब बेकार। बुढ़बा
तांत्रिक के जे भूत उठा उठा के पटकलकन्हि से तऽ हम सभ अप्पन आंखि सॅ देखलियैक।
मुदा जइ राति प्रेममायाक जुट्टी काटि लेलकनि, ददाजी ड्योढ़ी सॅ
उपटि जाइ ले विवश भ गेलाह......’
बिच्चहि मे ऐश्वर्य चिचिया उठलैक
“मइयाँ जी! मइयाँ जी! भुतनी हमर ओढ़नी फाड़ि के लऽ गेल यै
मइयाँ जी! आब हम मरि जाएब यै मइयाँ जी!’
ऐश्वर्य दाइक कामदार ओढ़नी आधा सॅ निपत्ता छलैक। आधा भाग घघरी सॅ
भूलैत छलैक!
अखनि धरि पुरूष
वर्ग सहज छल। मुदा आब खलबली मचि गेलैक। एक्कहि बेर ओ लोकनि असंयत भऽ गेलाह। शिवनंदनक
हुकुम पर सिपाही सभ जाँच पड़ताल में लागि गेल। ओ अपनहुं भाइ सभक संग बंदूक लऽ के
सावधान भऽ गेलाह।
दृश्ये बदलि गेलै।
सिंह दरवज्जा बाटे एनाइ जेनाइ पर रोक लगा देल गेलैक। किलाक चाहरदिवारी पर चढ़ि-चढ़ि
के संतरी सभ एम्हर ओम्हर नजरि दौड़बऽ लागल।
आगू बला गाछक
झुरमुट में किछु आहट भेलैक। राजा कालिकानंदन कड़कि के पूछलखिन 'के ? के थीक ओतऽ ?“
बंदूक तानि के फेर
पुछलखिन 'के छी ?'
झाड़क पाछू सॅ एकदम चीन्हल जानल स्वर सुनबा में आएल।
”कल्याण हो, कल्याण हो’’
आओर जे दृष्टिगोचर भेलै से सर्वथा कल्पनातीत छलैक
भुतनी मूर्खराज ! आ कि मूर्खराज भुतनी !
एक मे दू रूप। भुतनीक माथ पर जूताक मुकुट! हाथ मे सजमनि वला
राजदंड! आओर नाक में विशाल नथिया!
सोझे आबि के राजमाताक पऐर में खसि पड़लन्हि।
’दोहाइ सरकार! हम
छी मूर्खराज! अभय दान! अभय दान मिलए हजुर!
किहु क्षण धरि
अचंभित रहि गेलीह राजमाता। फेर आस्ते सॅ मुसकि उठलीह। राजाक दिस देखलनि। ओहो मुसकि
रहल छलाह। तैयो एक बेर फेर बंदूक तानि लेलखिन। बनौटी क्रोध में कहलखिन
”पाजी छह तों। एहनो मसखरी होइत छैक! जान सॅ हाथ धो लितह आइ!
हम जे कहलियैक जे चारू भाई के ठकि के देखा तऽ तों की बुझलहक ?.......जे तों रानी
लोकनिक बीच में ?........ अइठाम ?........ खैर......... जीत त तों गेलह! मांगऽ की
मंगैत छह!........ मुदा पहिने सभ सॅ माफी तऽ मांगह........ शएतान कहीं के!’
आदेश मिलैक संग एक बेर फेर राजमाताक पएर मे घोलटि गेल
मूर्खराज। राजा के सेहो दंडवत केलकन्हि। तकर बाद तऽ ओकर आंखि चमकऽ लगलैक। अपरिमित
लाभक आसार सॅ आश्वस्त भऽ के ओ सभक पएर पर धाँइ धाँइ खसऽ लागल। ओंघड़ा ओंघड़ा के सभ
के हंसबऽ लागल।
सभक नजरि बचा के
राजा, नित्यरमा दिस तकलन्हि। बेहोशी अओर दुपहरियाक रौद सॅ रक्ताभ भेल नित्यरमाक रूप
बड़ नीक लगलिन्ह हुनका।
दुर्गेश्वरी आदेश
देलखिन
’थारी लगबै जाउ आब’
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