मिथिला के पूर्णिया में, बनैली राज की चंपानगर शाखा के ऑनरेबल राजा बहादुर कीर्त्यानन्द सिंहजी। जन्म-१८८३, मृत्यु-१९३८। इन्होने अपने शिकार के अनुभवों पर दो किताबें अंग्रेजी में लिखीं ' पूर्णिया अ शिकार लैंड ' और 'शिकार इन हिल्स एंड जन्गल्स' . १९०६ इसवी में ' द बिहारी ' नामक पहला प्रादेशिक अंग्रेजी समाचार पत्र के प्रकाशन में इनकी प्रमुख भूमिका थी । यही बाद में 'द सर्चलाइट' कहलाया । एक लम्बे समय तक वे बिहारोत्कल संस्कृत समिति के अध्यक्ष रहे। अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष रहे। पटना का हिंदी साहित्य सम्मलेन भवन उन्ही की देन है। १९३४ के महा भूकम्प में जब पूर्णिया का जिला स्कूल भवन क्षतिग्रस्त हो गया तब उन्हों ने अपनी भूमि दान में दे कर नया जिला जिला स्कूल भवन बनवाया। १९१७-१८ में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति आशुतोष मुख़र्जी ने शर्त रखा कि अगर तीन दिन के भीतर २५०० रुपयों का इंतज़ाम हो तो वे मैथिली को पाठ्यक्रम मे शामिल कर लेंगे। कीर्त्यानन्द सिंह ने मैथिली की सेवा करने मे अपना सौभाग्य समझ कर तुरंत २५०० दिये और अपनी तरफ से ७५०० रुपये अतिरिक्त भेजे। इस प्रकार कलकत्ता विश्वविद्यालय में एम ए तक मैथिली पाठ्यक्रम को शामिल किया गया। १९१९ ईस्वी में कुमार कालिकानन्द सिंह और राजा कीर्त्यानन्द सिंह ने मिलकर १२०० वार्षिक शुल्क देकर ६ वर्षों के लिए मैथिली लैक्चर स्थापित किया। अफ़सोस की बात है की ऐसे साहित्य सेवक के नाम पर आज पूर्णिया में न कोई सड़क है नहीं कोई चौक। मिथिला अपने अनन्य सेवक को भूल गयी ।
Sunday, September 7, 2014
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