Sunday, June 30, 2024

हमर कथा संग्रह "हमरा बिसरब जुनि" के नवम पुष्प

 *आठम माए*

अंतिम पिंडदान कऽ के हम उठि गेलहुं। पिंडस्थली सॅ बाहर अबितहिं हृदय अचानक हाहाकार कऽ उठल।

‘एतेक टा गलती कोना भऽ गेल हमरा सॅ?’

ठेकान कऽ कऽ के प्रायः सभ स्वर्गीय-स्वर्गीया आत्मीय संबंधी सभ के पिंड देने छलियनि। हम एक एक कऽ के पिंडदान केने जाइत छलहुॅं आओर मीना एकक बाद एक नाम मोन पाड़ने जाइत छलीह। तइयो छूटि गेलैक। मोन एकदम सॅ गहबरित भ गेल।

 डेरा पहुंचितहिं हम लकथका के ओछाओन पर पड़ि गेलहुं। अइया के कोना बिसरि गेलियैक? कोना बिसरि सकलियै हम? आत्मग्लानिक अंत नहि रहल। मोन विकल भऽ उठल।

 पिंडदान मे एक घंटा से उपर लागि गेल छलैक। तएँ हम श्रान्त भऽ के पड़ि रहल छलहुं से बूझि मीना हमरा ले चाय बनबऽ लागल छलीह। चाय लऽ के एलीह त हमर चेहराक रंग देखि के कनेक डरि गेलीह। हमर माथ हॅसोथैत लऽग मे बैसि गेलीह

‘की भऽ गेल अहाँके? एना किएक पड़ल छी? बहुत थाकि गेलहु ने?’

हमरा कना गेल।

‘अइया के कोना बिसरि गेलिये यै, कोना बिसरि सकलियै हम!’

हमरा एहेन असंयत कहियो नहि देखने छलिह मीना। अवाक रहि गेलीह।

‘अइया के? अच्छा अहाॅंक खवासिन, की तऽ नाम छलनि--- ‘बिलखो’ ----------- से की भेलैक?--- अच्छा ----हुनको पिंडदान करबाक छल? -------- खवासिन के पिंडदान ?-------- हँसी के रोकैत मीना हमरा दिस ताकए लगलीह।

कतेको बेर हमर मुँह सॅ अइयाक के चर्चा सुनने हेतीह मीना। यदा-कदा सुनिते रहैत छलीह। मुदा अइया आओर हमर बीच कतेक अंतरंग संबंध छल से हुनका की बुझल छलनि? ओ की छल हमरा ले? से की बूझल छलनि हुनका? ओ मात्र खवासिन छल हमरा लेल? मोन अवसाद सॅ भरि गेल। दोसर दिस करोट लऽ के हम शून्य दिस ताकए लगलहुँ।

दूधक गिलास हाथ में लेने जेना अइया सामने मे ठाढ़ भऽ गेल।

‘नुनू दूध पिबी लियऽ’

हम पड़ाए लगलहुं। तहिया तीन चारि बरखक रहल होएब हम। दूध हमरा एकदम नीक नहि लगैत छल। तैं हम पड़ाएल जाइ आओर अइया हमर पाछू पाछू पूरा आँगन ओसारा के चक्कर लगबैत रहए।

‘नुनू ने, बाबू ने, पीबि लिय, देखू, दूध पिबी लेब तखनी ने खेलाइ ले जाएब’

‘नहि! हम एखने खेलाइ ले जाएब! दूध नहि पीयब हम’

लेकिन हम ओकर पकड़ में आबिये जाइ। ओ हमरा पुचकारि के कहए

‘बाबू ने, पिबी लियऽ’

हम कहियैक ‘नहि नहि, छाली छै, छाली हटा!’

आओर ओ अपन आंगुर से दूधक उपर में जमैत छाली हटा दैक आओर हमर मुंह में लगा दैक गिलास। हम छिटैक के दूर भागि जाइ आओर मुंह बिधुआ ली।

‘छीया चिन्नी त देबे नहि केलही! आर चिन्नी दे, चिन्नी दे, नहि त नइ पीबौ’

कतेक बेर ओ कनेक-कनेक चिन्नी मिला के हमरा परतारए, कतेक बेर हम नखरा करी। हमरा दूध पियाइए के दम लिये अइया।

हम खेलाए ले चलि जाइ अपन संगतुरिया सभक संग आओर ओ थाकि के ओसाराक खाम्ह सॅऽ लागि के बैसि जाए आओर हुक्का गुड़गुड़ाबए। अइया हुक्का पीबैत छल दुनू साँझ।

         एक दिन जखन छाली आओर चीनी के बहाना करैत करैत हम थाकि गेलहुं तऽ अइया के एकटा विलक्षण सुझाव देने छलियैक।

‘अइया गे, तू हमर सति दूध पी ले, हम तोहर सति हुक्का पी दैत छियौक’

‘गे माय! सुनियौन्ह हिनकर गप्प!’

अइया के बड़ जोर हँसी लागि गेल छलैक। मुदा हमर बाल-कौतूहल सऽ सहमि के ओहि दिन सॅ ओ हुक्का नुका के पीबए लागल छल।

मीना के हम कोना बुझबितियनि जे अइया की छल हमरा ले?

अइया निसंतान विधवा छल। नाम लिखबैत छल ‘बिलखो मोसोम्मात’। जमीनक दस्तावेज़ पर लिखल देखि हमरा बड़ कौतूहल भेल छल।

‘एँ गे अइया, तोहर नाम बिलखो किएक छौ गे?’

अइया जाँत-चकरी पर मूंग दरड़ि रहल छल। हमर प्रश्न पर बिहुंसि के बाजल

‘छोट में बेसीकाल कानियै बिलखियै ने, तही से हमर बाबू बिलखो बिलखो कहए लागलै’

‘आर मोसोम्मात?’

कनेक काल अइया किछु नहि बाजल। शून्य मे देखैत रहल। आँखि नोरा गेलैक किंचित।

‘कोख सुन्न, सीथो सुन्न हमर, हमरा मोसोम्मात नहि कहतै तऽ की कहतै हमरा?’

दुनू आँखि से नोर बहए लगलैक। से देखि हमर मोन सेहो गहबरित भऽ गेल। कनेक कनाइयो गेल। हमरा कनैत देखि अइया के अपन सभ दुख जेना एक्के बेर बिसरि गेलैक। हमरा अपन छाती मे समेट लेलक आओर हमर नोर पोछैत बाजि उठल

‘तोर अछैते के कहतै हमरा मोसोम्मात! जेकरा तोहर सन बेटा छैक तेकरा के कहतै मोसोम्मात?'

अइया बड़ीकाल तक हमरा कोर में बैसौने मारतए की कहाँ बुदबुदाइत रहल। ओहि दिन ने हम मोसोम्मातक मर्म बुझि सकलियै, ने कोख-सीथक अर्थ, मुदा एतबा धरि पक्का कऽ लेलहुं जे आब कहियो फेर ई गप पुछि के नहि कनेबै अइया के।

        अइया के घऽरबला गाड़ीवान छलैक। अपन बैलगाड़ी किराया पर चलबैत छल आओर अपन समाज में खुशहाल कहबैत छल। अइया के ढेरी चानी के गहना सब बनबा के देने छलैक। मुदा संतान नहि होइत छलैक, तै लेल दुनु प्राणी विकल रहैत छल। कतेको बेर जीवछ धार में नहा आएल छल, कतेको कबुला मिनती मुदा सब व्यर्थ। अइया के अपन घरवलाक वंश के ततेक चिंता छलैक जे अंत में थाकि हारि के अपन बालविधवा बहिन ‘नगेसरी’ सॅ अपन वऽर के चुमौना करवा देलकै। बहिन के सौतिन बना के आनि लेलक। बरख भीतरे बेटा भेलैक, मुदा सौतिन कतौ बहिन होइ, से कोम्हर बाटे अइयाक घऽरबला आओर गृहस्थी दुनू छिना गेलै से स्वयं अइयो के पता नै चललैक। अपनहि घर में खवासिन बनि के रहि गेल अइया। तीने दिनक बोखार मे जखन घऽरवला सेहो विधवा बना गेलैक तखन बेबर्दाश्त दुःख सॅ हमर माँ लग नौकरी धऽ लेलक। काज में लागि के अपन दुःख बिसरबाक प्रयास में लागि गेल।

हमर जन्म भेल तऽ अइया अपन सभटा मातृत्व हमरे पर उझलि देलक। हमरा सुतेबाक, उठेबाक, तेल मालिश करबाक, सबटा दायित्व अपना उपर लऽ लेलक। हमर माँ सेहो अइया सन जिम्मेवार खवासिन पाबि निश्चिंत भऽ गेलीह।

रहड़िया मे नैहर छलैक अइयाक, तएँ लोक वेद ‘रहड़ियावाली’कहैत छलैक। हमर माँ आओर काकीमाँ सेहो ‘रहड़ियावाली’ कहैत छलखिन। हमहूं सएह कहै के कोशिश करैत हेबैक मुदा डेढ़ बरखक बएस मे एतेक टा नाम कतहु कहल होइक, तएँ ‘अइया’ कहए लगलियैक। माँ कहैत छलीह जे भरि दिन ‘अइया’ ‘अइया’ अनघोल केने रहैत छलियैक हम। एतऽ तक जे सुतबो करियैक ओकरे कोरा टा मे। जखनि निन्न पड़ि जाए तऽ माँक ओछाओन पर दऽ दैत छल अइया। तेहेन हिस्सक लागि गेल छल जे कखनहुं के माँ अवग्रह मे पड़ि जाइत छलीह। एकबेर अइया दू दिन ले कोनो करतेबता मे नैहर गेल छल। हमरा ज्वर भऽ गेल। आब, अनदिना तऽ हम केकरो लग जल्दी सुतबे नहि करैत छलियैक, ज्वरक हालत मे तऽ प्रश्ने नहि उठैत छलैक। कठिन समस्या उत्पन्न कऽ देलियैक हम सभक लेल। ने निन्न पड़ए ने चैन। हारि दारि के माँ लोक पठौलखिन रहड़िया। मुदा भोर सॅ पहिने ओकर अबै के कोनो उमेद नहि छलैक। माँ हमरा कतबो दुलारथि, पुचकारथि, थपकी देथि, मुदा हम टकटकी लगौने ‘अइया अइया’ करिते रहि गेलियैक। एम्हर हमरा सुतबैक प्रयास मे माँ के कखनि तंद्रा घेरि लेलकनि से नहि बुझलखिन। कनेक काल बाद जखन तंद्रा टुटलनि तऽ देखै छथि जे बच्चा गायब! चेहा के उठलीह। चारू कात हमरा ताकऽ लगलीह। मुदा बेसी दूर नहि जाए पड़लनि। बगल वला कोठली मे अइयाक ओछाओन पर निसभेर सूतल भेंट गेलियनि हम। माँ के बड़ आश्चर्य भेलनि, संगहि कनेक ईर्ष्यो भेलनि भरिसक, किएक तऽ अइया के अबितहिं टोकलखिन

‘दूरि कऽ के राखि देने छियै अहाँ बच्चा के, तेहेन कोरसट्टू बना देने छियैक जे एक छन अहाँक बिना रहितहिं नहि अछि। हमरा तऽ लगैए जे हमहीं आन भऽ गेलियैक! अहीं आब ओकर सभकिछु ------’

माँ अपन गप पूरो नहि कऽ सकलीह कि हम आबि के अइया के कोंचा पकड़ि के ठाढ़ भऽ गेलियै। मुदा अइया के जेना काठ मारि देलकैक। हम कतबो ओकर कोंचा झिकियै ओ एकदम मुड़ी झुकौने ठाढ़े रहल, हमरा दिस तकबो नहि केलक। आब हम लगलहुं कानऽ, हचुकि हिचुकि के कानऽ लगलहुं, कनैत कनैत मुँह लाल भऽ गेल। हमर हालत देखि अइयाक करेज फाटए लगलैक, ओ बेर बेर माँ दिस ताकन्हि मुदा बाजए किछु नहि। माँक मोन तऽ स्वाभाविके गहबरित भऽ गेल छलनि, हमरा कोरा मे उठा के अइया के सौंपि देलखिन।

‘देखैत की छी? लियऽ सम्हारू अपन पूत के, लारू बातू भेल जाइए’

लपकि के अइया हमरा अपन छाती से लगा लेलक।

माँक कहल बात अइया मोन मे नहि रखलक। हँ, ओहिदिन सॅ नित्य दुपहरिया मे हमरा माँ लग दऽ आबए। चारि बजे जखनि माँ चाय पिबै ले ददाजी लग जाथि तऽ हमहूं दूध पिबै ले अइया लग चलि जाइ।

मोनक बात मोनहिं समाप्त।

  अइया खूब मनोयोग सॅ नौकरी करए लागल। जे दरमाहा भेटैक से हमर माँ लग जमा कऽ दनि। दसे टाका तऽ दरमाहा छलैक। तीन बरखक बाद ओही जमा पाइ से चारि बीघा खेत कीन लेलक ‘बिलखो मोसोम्मात’। ततबे नहि, एकटा चानीक सतलड़ी सेहो गढ़बा लेलक गामक बुढ़बा सोनार सॅ।

तहिया सस्ती के जमाना छलैक। तएँ मात्र पचास टाका बीघाक दर से जमीन सुतरि गेल छलैक अइया के। पुरनियाँ जिला में मैदान परक जमीन में चन्नी पटुआ छोड़ि आर किछु नहि उपजैत छलैक। दामो देनिहार नहि छलैक। मुदा किछुए बरखक भीतर कोशी प्रोजेक्टक कृपा सॅ बगल बाटे नहर बनि गेलैक आओर वएह परती भूमि उर्वरा बनि गिरहथक बखारी-कोठी भरऽ लगलैक। अइया सेहो अगहनी-चैती करए लागल। हाथ मे टाका रहऽ लगलैक। गामक लोक फेर चीन्हऽ लगलैक। हटिया बजार से सौदा लऽ के जखनि अइया टोल दिस जाए तऽ नेना भुटका सभ ‘बिलखो मइयाँ’ ‘बिलखो मइयाँ’ कहि के देह पर लुधकि जाइ। माथ पर सॅ ढाकी उतारि के, किनलाहा सभटा मूढ़ी-कचरी आओर बतासा बाँटि दै छलैक छौंड़ा-छौंड़ी सभ मे। मुदा ओइ ढाकी मे गुदरी सभक तऽर मे जे सौदा अप्पन ‘बेटा’ लेल नुका के रखने रहैत छल तेकर कनेको भान नहि होमए दैत छलैक टोलक लोक-वेद के।

आँगन मे अइया के पएर रखैत देरी हम ओकर लग पहुँचि जाइ। कनेको सुस्ताइयो नहि दियैक। जहिना ओ ढाकी राखि के बैसए कि पाछू से ओकर गरदनि पकड़ि के झुलि जाइत छलियैक हम।

‘सौदा! सौदा दे ने!’

नेहाल भऽ जाइत छल अइया। छनहिं मे एकटा छोट सन कागजक पुड़िया निकालि के हमर हाथ मे दऽ दैत छल। हम ओकर हाथ सॅ ओ अमूल्य पुड़िया झपटि के कत्तौ बैसि जाइ आओर तन्मय भऽ के पेट-पूजा करऽ लागी। अइया टुकुर टुकुर तकैत रहए हमरा दिस। खाइ हम आओर तृप्तिक अनुभव ओकरा होइक। ओ कनिएटा देहाती सोनपापड़ी मे जेहेन स्वाद होइत छलैक, जे पारलौकिक अनुभूति होइत छल हमरा, तेेकर लेशमात्रो आइ तक कोनो ‘हल्दीराम’ के राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त ‘सोहनपापड़ी’ मे नहि भेटल।

 जमीन-जाल जे किनने अरजने हो, सरल हृदया अइया के मोन मे बेसी छः-पाँच नहि छलैक। मीठ मीठ गप पर केओ ठकि सकैत छलैक अइया के। हमर मुड़न मे अइया के सोनाक माकड़ी देलखिन माँ। माकड़ी पाबि के अइया प्रसन्न तऽ भेल मुदा ओकरा आओर भरिगर गहना के आस छलैक। माँ लग अरजी लगौलक

‘ई तऽ पटपट छैक रानी जी, आठो आना नहि हेतैक’

माँ के नीक नहि लगलनि। कहलखिन

‘अहाँ के माकड़ी से ने मतलब अछि यै रहड़िया वाली, माकड़ी पहिरू, जहिया तोड़ब-बेचब तहिया हम उपर सॅ लगा देब आर सोन’

अइया माँ के तऽ किछु उत्तर नहि देलकनि मुदा ओकरा चैन नहि पड़लैक। सोनार कतऽ जाके माकड़ी के फेर से गढ़बा अनलक भरिगर कऽ के। बड़ गौरव सॅ माँ के देखौलकनि

‘अहाँ तऽ नहिए देलियैक रानी जी, हम अपनहि फेर से गढ़बा लेलियै, पूरे दस आना के’

माँ कहलखिन

‘कथी ले ओहेन सुंदर गहना तोड़बा लेलहुं? कलकत्ताक बनल छलैक। आ हम तऽ कहिये देने छलौं जे तोड़ब या बेचब तऽ हम आर सोन दऽ देब’

‘से हमरा से कोनो सोना थोड़े लेलकै सोनरबा, तीन टाका गढ़ाइ देलियै बस’

माँ के संदेह भेलनि, पुछलखिन

‘बिनु सोने कोना बनौलक? ओकरा लग पाइ छलैक अहाँक?’

‘नै यै रानी जी, सोन कते से दितियै? बीसपैसहिया देलियै नबका, वएह लगा देलकै, देखियौ ने’

अइया अपन बहादुरी पर मुस्काइत, पीयर रंगक बीस पैसाक सिक्का सॅ गढ़ाओल माकड़ी माँ के देखौलकनि।

माँ माथ पीट लेलनि, खूब डँटलखिन

‘केहेन ज्ञान अछि अहाँक? सोन दऽ के बीसपैसहिया लऽ लेलहुं! एक्को बेर तऽ पुछितहुं हमरा, साफ ठकि लेलक अहाँ के!’

तहिया सॅ अइया सावधान भऽ गेल, कोनो जमीन-दस्तावेजक काज माँक सलाह-मशविराक बिनु किन्नहु नहि करितए। किछु बरखक बाद जखन हम स्कूल जाए लगलहुं तखन ओ हमरो से पुछितए। मुदा तइयो ठकिए लैक लोक।

 जहिया सॅ अइया खेत किनलक, दुफसला अन्न उपजऽ लगलैक, तहिया सॅ गामक लोकक संग-संग सौतिनो चीन्हे लगलैक, कहियो बड़ी-भात तऽ कहियो दलिपिट्ठी रान्हि के नेने अबैक। शुरु-शुरु मे अइया सौतिन के एक्कोरत्ती मोजर नहि दैक, मुदा सौतिने टा नहि, बहीनो छलैक ने। सहोेदरक आकर्षण कतौ रोकल जाइ। आस्ते आस्ते सौतिनक दुर्व्यवहार बिसरए लगलैक आओर बहिनक नेह गढ़ाए लगलैक। दुनू बहिन एक्कहि थारी मे खाए लागल। सतौत कोरा मे बैसि जाइ तऽ नीक लगैक अइया के। आखिर एकरे ले ओतेक टा त्याग केने छल। जखन नगेसरीक बेटा पढ़ै लिखै जोग भेलैक तऽ अइया अपनहिं जा के गामक स्कूल मे नाम लिखबा एलैक।

‘हँ हौ मास्टर साहेब, नाम लिखिये अइ छौंड़ाक ‘सपूत कामति’, बापक नाम ‘पुलकित कामति’, साकीन- कालीगंज, थाना- किरतीयानन नगर, जिला-पुरैनियाँ, बेहार राज’

हेडमास्टर के हँसी लागि गेलनि। पुछलखिन

‘बापरे, तुमको तो सब मालूम है, थाना- जिला सब जानती हो तुम? बिहार का राजधानी जानती हो?’

अइया केकरो से दबै वाली नहि छल, त्वरित उत्तर देलकनि

‘किएक नहि जानेंगे? किएक नहि जानेंगे? पटना हमहूं गेल छियैक मास्टर साहेब, रानी जी के पएर लागल कलकत्तो गेल छियैक यौ!’

हेडमास्टर के आब हँसी नहि रोकल जाइत छलनि, बिहुंसैत गांधी जीक तस्वीर के इंगित करैत पुछलखिन

‘तब तो तुम इनको भी पहचानती होगी?’

‘हिनका के नै चिन्हता है? सभइ चिन्हता है, इहै देस मे महगी आना है, जे चाउर रुपैया पसेरी बिकता था, उहै एखनी रुपैया मे एक सेर मिलै छैक हौ मास्टर साहेब’

मास्टर साहेब निरुत्तर भऽ गेलाह, बजितथि की?

सपूत कामति जखन अइया के ‘बड़की मइयाँ’ कहि के बजबै तऽ अधलाह नहि लगैक अइया के। कहियो किताब कलम ले पाँच टाका तऽ कहियो पैंट-कमीज ले दस टाका देमए लगलैक नगेसरी के। बाद मे तऽ सुनलहुं जे मैट्रिक तक पढ़ौलकै सपूत के। मुदा दू ठाम अइया कोनो समझौता नहि केलकनि। सोनपापड़ीक पुड़िया के कहियो बॅटवारा नहि केलकनि, आओर जइ आँगन मे मलिकाइन से नौड़ी बनाओल गेल छल ओइ आँगन मे फेर पएर नहि रखलकनि। तइयो ठकाइए गेल अइया।

सात बरखक वएस मे पटना के एकटा आवासीय स्कूल मे हमर दाखिला करा देल गेल। तकर बाद तऽ गरमी, दसमी आओर बड़ा-दिनक छुट्टी के तेहेन लम्बा सिलसिला चलल जे काॅलेजक पढ़ाई के बादहि समाप्त भेल। अइ अंतराल मे जखन-जखन गाम आबी तऽ अइया के ओहिना, पहिनहि जेकाँ, दूध औंटैत, दही पौरैत, हुक्का पीबति, आओर माँक सेवा करैत देखियैक। ओहिना हमरा ले सोनपापड़ीक पुड़िया आनए, ओहिना हम ओकर गऽर मे हाथ दऽ के लटकि जाइ। हम शनैः शनैः पैघ होइत गेलहुं आओर ओ शनैः शनैः बूढ़ होइत चलि गेल। पीठ पर कूबड़ निकलि गेलैक। मुदा तैयो हाट बजार करिते रहल, हमरा ले सौदा अनिते रहल अइया। ओ क्रम कहियो नहि टुटलैक। मोन एकदम सॅ टुटि गेलैक एकाएक।

नगेसरीक संग जाके एकटा कनियाँ देखि आएल छल सपूत लेल। खूब पसिंद छलैक दुनू बहिन के। कनियाँ गोर-नार आओर मिडिल पास छलैक। सपूतक बियाह केर बड़ उमंग छलैक अइया के। हाथ खोलि के खर्च केलक। गाम भरि मे जेहेन कहियो नहि भेल छलैक तेहेन पैघ झमटगर डाला बनबौलक। बरियाती मे बाजा-रोशनी सभ केलक। सात थान चानी के गहनो देलकै। तै पर से सोनाक छक। मुदा तैयो नगेसरीक आँगन मे पएर नहि देलकै अइया, हमरे दरबज्जा पर सॅ सपूत के विदा केलकै। प्रातहि जखन कनियाँ एलै तऽ सातो थान गहना पहिरा के पहिने माँ के गोड़ लगबै ले अनलकै। माँ गहना देलखिन। हमहूं गहना देलियै। अइया बड़ खुश छल।

दुइए मासक बाद महा वारुणी योग लगलैक। हमर माँ आओर काकीमाँ प्रयाग मे त्रिवेणी-स्नान ले जेबाक नेआर केलनि। पहिल बेर एहेन भेलैक जे अइया संग जाइ से मना कऽ देलकनि। कहलकनि

‘भरि गामक लोक गंगा नहाइ ले जाइ छै रानी जी, केओ काढ़ा-गोला तऽ केओ मनिहारी घाट, नगेसरी आर सपूत बड़ खुसामदि केने छैक रानी जी, हमरा गंगा-नहान करा के पुन्न कमेतै दुनू माए-पूत। सपूतबा कहै छै ‘हमहूं तोरा ले किछु करए चाहै छियौ गे बड़की मइयाँ’। हम कोना मना करियै रानी जी?’

अइया नहि गेल माँक संग।

 नगेसरी आर सपूत अइया के लऽ के काढ़ा-गोला लेल विदा तऽ भेलैक मुदा पहिने पुरनियाँ के रजिस्ट्री ऑफिस मे लऽ गेलैक। पहिनहि से सपूत सभटा चक्रव्यूह रचि के तैयार केने छलैक। बुढ़िया के ठकि फुसिया के कहलकै जे गंगा-स्नान मे बड़ भीड़-भाड़क दुआरे सरकारी परमिट बनैत छैक। तै पर दस्तखत करए पड़तौ। किरासन के परमिट आर चीनी के परमिट सॅ अइया नीक जेकाँ परिचित छल। मुदा ई परमिट तऽ दोसरे रंगक बुझि पड़लै अइया के। अइया के संदेह भऽ गेलैक। ओ किन्नहु दस्तखत नहि केलकनि दान-पत्रक दस्तावेज पर। दुनू माए बेटा मिलि के हजार तरहें बुझौलखिन मुदा अइया टस से मस नहि भेलनि। हारि दारि के सपूत काढ़ा-गोला लेल विदा तऽ भऽ गेल मुदा विफलताक दंश सॅ ओकरा पर भूत सवार भऽ गेल छलैक। काढ़ा-गोलाक बदला सिमरिया लेने गेलैक। कहलकै जे बेसी पैघ तीर्थ करा दैत छियौक। सिमरिया पहुँचि के एकटा नाव किराया पर लेलक आओर नदीक बीचोबीच दियरा पर जा के उतरि गेल। लोकक ठट्ट लागल छलैक। नगेसरीक संग अइया गंगा नहौलक, पंडाक मदति सॅ दान पुन्न सेहो केलक, मेला मे सपूतक कनियाँ ले चूड़ी टिकुली सेहो किनलक। बहुत रास माटिक घैल आर सुराही बिकाइत देखि के अइया के एकटा सुराही हमर माँक लेल मोलेबाक इच्छा भेलैक। वएह सुराही बेचारी ले काल भऽ गेलैक। एम्हर ओ सुराही मोलबए लागल आओर ओम्हर सपुतबा माए के इशारा कऽ देलकै। बड़ीकाल तक मोल मोलाइक बाद अइया दुटा सुराही किनलक आओर पाइ दैले जे बहिन के सोर पारलक तऽ दुनू निपत्ता! आब सुराही की कीनत? चारूकात फिफहिया भेल नगेसरी आओर सपुतबा के ताकए लागल। मुदा ओ दुनू कतौ रहितैक तखन ने? दिन सॅ साँझ भऽ गेलैक। आस्ते आस्ते लोक सभ छँटए लगलैक। मेलाक दोकानदार सभ दोकान दौरी समेट समेट के जाए लगलैक। आब अइया के डऽर पैसि गेलैक। थर-थर काँपए लगलै बुढ़िया। एकबेर करेज के कड़ा कऽ के जोर सॅ चिकड़लक

‘गे नगेसरी गे!!!’

आँखिक आगू अन्हार भऽ गेलैक। ठामहि खसि पड़ल। चाउन्हि आबि गेलैक।

 बीस दिनक बाद जखनि माँ प्रयाग दिस सॅ घुरलीह, तऽ अइयाक सपूत ओकर श्राद्धक गमैया भोज तक कऽ के निश्चिंत भऽ चुकल छल। नगेसरी छाती पीट-पीट के बहिन ले नोर-पोटा चुआ चुकल छल। बुढ़िया के एक तरहें गंगे लाभ भेल छलैक। गंगा मे डूब दैत काल पएर पिछड़ि गेल छलैक, जावत सपुतबा हाथ बढ़ा के पकड़ितैक तावत भसिया के कत्तौ चलि जाइत रहलैक। अइया के गंगा-लाभ करा के एक तरहें यशे कमौलक सपूत कामति।

 मुदा से यश बेसीकाल तक नहि टिक सकलै। बिलखो मोसोम्मात बड़ कठजीव निकललैक। नहि मरलै बुढ़िया। माँक संग जे कतेको बेर पटना आओर कलकत्ताक यात्रा केने छल से अनुभव काज देलकै अइया के। अगबे रेत पर बेहोश भऽ के खसैत देखि के एकटा मलाह के दया लागि गेलैक। वएह दयावान हमर अइया ले भगवान भऽ गेल ओहिदिन। अपना घर पर राखि के सेवा केलकै आओर जखन कनेक चलै फिरै जोग भेलैक तखन गाम तक पहुंचा देलकै। भीतर तक चूरल मोन आर मरघटक भूत सन काया लेने अइया घुरि एलैक। अधमरू हालत मे आबि के मुदा तेहेन बिछाओन धेलकै जे फेर उठि के ठाढ़ नहिए भेलैक। एकदमे टूटि गेल छलैक अइया। जखन गामक डिस्पेंसरीक डाक्टर जवाब दऽ देलकै तखन पुरनियाँक सभ सॅ पैघ के0 सी0 झा डाक्टर से देखौलियैक। मुदा ओहो जानलेवा पीलियाक अंतिम चरण कहि के हाथ समेट लेलनि। गाम लेने एलियै हम। देह दिनानुदिन गलैत चलि गेलैक। मात्र अस्थि-पंजर रहि गेलैक। अइया के कोनो जरूरी अंतिम काज छलैक से बेर-बेर माँ के कहनि। माँ रहड़िया से अइयाक छोट भाए के बजबा लेलखिन। अइया के जिद्द लागि गेलैक। पुरनियाँ से रजिस्ट्रार बजाओल गेल। एक बीघा अपन भाए के आओर शेष तीनू बीघा हमर नाम पर दान-पत्र केलक अइया। हम मना करैत रहि गेलियै मुदा किन्नहु नहि मानलक।

 ई अंतिम कर्तव्य कऽ के जेना मुक्त भऽ गेल ओ। आब कोनो साध नहि रहलैक। आखिरी काल मे लागल जे किछु बड़बड़ा रहल छलैक। ओकर मुँह लग कान सटौलियै तऽ बुझि पड़़ल जेना कहैत छलैक

‘तोर अछैते के कहतै हमरा मोसोम्मात!

‘तोर अछैते के कहतै हमरा मोसोम्मात!’

 मीना हमरा ले जलखइ लऽ के आबि गेल छलीह। सेव, अखरोट, बादाम आओर गरमागरम दूध। अपनहुं ले वएह सभ अनने छलीह। हम उठि के बैसि रहलहुं आओर चुपचाप खाए लगलहुं।

‘पंडा जी एक बजे तक बदरी-विशालक भोग लऽ के अओताह से कहि गेल छथि। तावत अही सभ से काज चला लियऽ, आ कि आर किछु मंगा दियऽ?’

‘सोनपापड़ी भेटतै एत्ते?

जे मोन मे छल से अनायासे मुँह से निकलि गेल।

‘भेटतैक किएक नहि, मुदा जेहेन अहाँ के नीक लगैए से एतऽ पहाड़ में भेटनाइ असंभव’

‘छोड़ि दियौक तखन’

वास्तव मे एतेक उँचाई पर बद्रीनाथ मे, ओ खोमचा वला सोनपापड़ीक कल्पनो केनाइ मूर्खता छल हमर। हम झेंपि गेलहुं। मुदा मीना हमर मनोव्यथा ताड़ि गेलीह। हमरा आश्वस्त करैत बजलीह

‘पंडा जी सॅ हम सभ गप कऽ लेलहुं ए, अहाँ चिंता नहि करू’

‘से की?’ --- कोन गप?’

‘इएह जे काल्हि हमरा लोकनि फेर ब्रह्मकपाल शिला पर जाएब। अहाँ रहड़िया-वाली के पिंडदान कऽ देबनि। एक झलक बद्री-विशाल के दर्शन कऽ लेब, तकर बादहि विदा होएब एते से’

हम मीना दिस ताकए लगलहुं, कोना हमर मोनक गप बुझि गेलीह मीना?

भावातिरेक मे मीनाक दुनू हाथ कसि के पकड़ि लेलियनि हम। कहलियनि

‘कोना बुझि जाइत छी अहाँ हमर सभटा मोनक गप यै!’

मीना मुसकि के उत्तर देलनि

‘तखनि से देखि रहल छी अहाँके, कोना मुँह लटकौने छी, हम नहि चीन्हब तऽ आर के चीन्हत? चलू, उठू, आब मुँह हाथ धो के तैयार भऽ जाउ। कनेक घुमि फिर अबैत छी। अलकनन्दाक पुल पर, रौद मे टहलै मे कतेक नीक लगैत छैक, नहि?’

उत्तरक प्रतीक्षा नहि केलनि हमर जीवनसंगिनी। हमर हाथ मे तौलिया थमा के उठि गेलीह। बजलीह

‘स्टैण्ड में जा के टैक्सीवला के सेहो प्रोग्रामक तब्दीली बतेबाक अछि, आ दुपहरिया मे अहाँ से रहड़िया वाली के कथा सेहो विस्तार सॅ सुनबाक अछि, आइ हम नहि मानब, बहुत दिन सॅ अहाँ टारि जाइत छी।’

मोन कृतज्ञता से भरि गेल मीनाक प्रति। कहलियनि

"आत्म माता गुरोःपत्नी ब्राह्मणी राज पत्निका

धेनुर्धात्राी तथा पृथ्वी सप्तैता मातरः स्मृताः"

स्मृति मे साते प्रकारक माए के उल्लेख छैक। मुदा अइया सेहो हमर माए छल यै! आठम माए!’

मोन हल्लुक बुझि पड़ल। आज्ञाकारी बालक जेकाँ हम झटपट उठि के तैयार होइ ले चलि गेलहुं। जाइत जाइत एकबेर मीना दिस फेर कृतज्ञता सॅ तकलहुँ। मीना भक्तिपूर्वक केकरो प्रणाम कऽ रहल छलीह।

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