Friday, December 1, 2023

"हमरा बिसरब जुनि" कथा संग्रहक तेसर पुष्प

 हमरा बिसरब जुनि


‘राजा होथि कि महाराजा, तेरह तेरह बरखक कन्या रखताह त लोक कहबे करतन्हि’

केओ कुटुम्बिनी बाजल छलीह से रानी दुर्गेश्वरी देवीक कान मे पड़ि गेल छलन्हि।

बात त सत्ये छलैक। यशोमायाक धुआ यद्यपि छोेट छलन्हि मुदा बारहम पुरि के तेरहम चढ़ि चुकल छलनि से कनेक टा बात नहि छलैक। मुदा रानी साहेब की करथु। कत्तहु फेकि कोना के दितथिन। जतेक वऽर ठीक होइत छलनि सभक एक्कहि मांग। ‘केदलीक तालुका लिख दियऽ’ अही एक मांग पर कथा स्थगित भऽ के टुटि जाइत छलन्हि।

‘कालीगंज रेयासत’ कनेक टा नहि छलैक। बावन धार एवं बावन पहाड़क राज्य कहबैत छलैक। मुदा केदलीक तालुका अपन उर्वर भूमिक कारणे रेयासतक नाक कहबैत छल। सभ सॅ बेशी राजस्व अही खंड से अबैत छलैक। तैं केदलीक इलाका केँ कन्यादानक मूल्य मे देनाइ राजा के कदापि मंजूर नहि छलनि। 

एक से एक कथाक सूत्र अबन्हि। उच्च श्रोत्रिय, ताहिपर सॅ सुंदर प्रथम वर सभ। मुदा जहिना कथा उपस्थित कयेल जाइ कि घूरि फिर के एक्कहि ‘केदलीक’ मांग कऽ बैसथि बऽरक बाप। 

कालीगंजक ब्राह्मण राजवंश श्रोत्रिय नहि छल तैं श्रोत्रिय सॅ संबंध हुनका लोकनि के बड़ श्रेयस्कर बुझाइन्ह। ऐहेन नहि छलैक जे श्रोेत्रिय लोकनि कालीगंजक संबंध से साफे कतराति होथि। कतेक उच्च श्रेणीक लोक भीतरहिं भीतर ऐहेन संबंध बनबैक लेल लालायित रहैत छलाह। कारण छल जे हिनका लोकनि के प्रचुर धन संपदा तऽ भेटबे करन्हि, संगहि विशेष आदर सम्मान सेहो प्राप्त होइन्ह। तै श्रोत्रियेतर परिवार सॅ संबंध स्थापनक फलस्वरुप होइवला सामाजिक भर्त्सना एंव निष्कासनहु के इ लोकनि सहि जाथि। हॅं एकर भरपाइ-स्वरुप किछु मोट टाका आओर मुंहमांगल भू-संपदाक लोभ हिनका लोकनि के ग्रसित कइये लन्हि। आ से भेटबो करन्हि। 

मुदा ‘केदली’ देनाइ साफ अस्वीकार छलनि राजा केॅं। अंत मे, बड़ अनुसन्धानक बाद एकठाम कथा स्थिर भेलन्हि। अठारह वरखक प्रथमवर, द्वितीय श्रेणीक बड़का सोति।  केदली तऽ बाॅंचि गेलनि मुदा व्यवस्थाक नाम पर पूरे एगारह हजार टाका देमऽ पड़लनि। ताहू पर शर्त ई, जे टाकाक प्रसंग गोपनीय रखैत, वऽर केॅ एहितरहेॅं लऽ जाउ जाहि सॅ बुझना जाइक जे बऽरक अपहरण भेल हो। कियेक तऽ अपहरणक कथाक प्रसार भऽ गेने सामाजिक बहिष्कार सॅ बाॅंचि जेताह, ऐहेन विश्वास छलन्हि वऽरक बाप के। 

कालीगंजक लोक के सभटा मान्य करहि पड़लनि। राजकन्याक बढ़ति वयेसक दुआरे ओ लोकनि कन्यादानक लेल ततेक आतुर छलाह जे बेसी मीन-मेख निकालबाक औकाति नहि छलन्हि। ताहि पर सॅ, ई कथा आन सभ तरहेॅं उपयुक्त छलन्हि। 

बैसाख शुरु होइ सॅ एक पख पहिनहि भुटकुन झा अपन बालकक अपहरणक संपूर्ण योजना लिख के पठा देलखिन। ‘आगामी शुक्ल दशमी के प्रातहि बौआ अपन बहिनक सासुरक लेल विदा हेताह। संगमे मात्रा एकटा खवास रहतन्हि। ई अवसर सभ तरहेॅं ठीक बुझना जाइत अछि तैं सरकार के लिख रहल छी जे एहेन उपाय कयेल जाये जे बौआक कठमान ‘भोला बाबू’ ओहि दिन प्रस्तुत रहथि। बाटहि सॅ लऽ जाथिन से नीक। भोला बाबू यदि कहथिन जे ‘चलू, दड़िभंगा धुरा दैत छी’ तॅऽ कोनो तरहक आपत्ति नहिये करताह। शेष अपने स्वयं सर्व समर्थ छी- इत्यादि।’

योजनाक अनुरुपे सभ कार्य भेलैक। वऽरक कटमाम श्री भोलानाथ झा जे कालीगंजक सर्कल मनेजर छलााह, आओर अइ कथा मे मुख्य घटक सेहो छलाह, नियत समय पर राजक मोटरकार लेने ओइ स्थान पर पहुचि गेलाह, जै बाटें वऽर के आयेब निश्चित छलनि। एकटा गाछक तऽर मे कार रोकि के भागिनक प्रतीक्षा करऽ लगलाह। करीब पौन धंटाक बाद दूटा व्यक्ति अबैत दृष्टिगोचर भेलखिन। एक गोटा घोड़ी पर बैसल चल अबैत छलाह आओर दोसर युवक जे संभवतः हुनकर नौकर छल से पाछाॅ पाछाॅ माथ पर पेटी उठौने अबैत छल। लऽग अबै पर भोला बाबू चीन्हि गेलखिन। वऽर आओर हुनक खवास छल। कार से उतरि के सोर पाड़लखिन 

‘औजी, घूटर बौआ छी यौ’?

‘लालममा! अहाॅं एतऽ ?’ कहैत लऽग आबि के धूटर, माम के गोड़ लगलखिन। आओर किहु पुछितथिन मुदा हुनकर घ्यान तऽ चमचमाइत मोटरकार दिस छलन्हि। पुछलखिन 

‘ई हवागाड़ी थिकैक ने! अहाॅक थिक लालममा ?’

लालमामा सोचितहि छलाह जे षड़यंत्रक सूत्रपात कतऽ सॅ करी से अनायासे भऽ गेलन्हि। सूत्र के मतबूती सॅ पकड़ैत बजलाह

‘हमरे थीक, सैह बुझू- - - घुरब मोटरकार पर ?’

घूटर कुदि के बजलाह ‘कनेके घुरा दियऽ, कोम्हर सॅ बेसबैक ?

- - चलू ने!’

भागिनक अगुताइ देखि के भोला बाबू जाल फेकलन्हि ‘कनेके कियेक घुरब ? चलू नीक जेकाँ घुरा दैत छी। हमर संग दड़िभंगा चलू। मोटरकारो पर चढ़ल भऽ जायेत आओर दड़िभंगो घूरि लेब’

एक्कहि संग दू दू टा आकर्षक प्रस्ताव सॅ पहिने तऽ घूटर बड़ प्रसन्न भेलाह मुदा लगले मोन पड़लनि जे हुनका बहिनक ओतऽ जेबाक छलनि। उदास भऽ के माम के कहलखिन 

‘मुदा हम त लोहना जेबाक लेल निकलल छलहुँ- - सीता बहिन ओइठाम - -’

‘से कोन भारी बात छैक, हम साँझ धरि अहाँके लोहने पहुँचा देब। हमहू सीता दाइ सॅ भेंट कऽ लेबेन्ह। रौ मुनमा- - तो घोड़ी लऽ के लोहना चलि जो, सीता दाइ के कहभून जे लालममाक लेल माछ बना के रखतीह, हम साँझो साँझ तक पहुचि जेबन्हि घूटरक संग’

आब घूटर जाल मे पैसि चुकल छलाह। झटपट गुनमा के आवश्यक निर्देश दऽ के कार के पिछुलका सीट पर भोला बाबूक बगल मे बैसि गेलाह। मोन आनंद सॅ ओतप्रोत छलनि। एक्के संग कैकटा प्रश्न पूछऽ लगलखिन 

‘ई ठीके हवे सॅ चलैत छैक ? लगाम तगाम किच्छु नहि ? चकाचक केहेन करैत छैक!’

हॅंसि के भोलाबाबू षड़यंत्रक अगिला चरणक सूत्रपात केलन्हि। कहलखिन ‘अहू सॅ बेशी चकाचक करैत मोटरकार होयत अहाँके। अहू सॅ बढ़ियाँ, बस, अप्पन लालममा पर विश्वास राखऽ पड़त।’ 

लालमामाक मुह ताकऽ लगलाह घूटर। कान पर जेना विश्वासे नहि भेलन्हि। लालमामा कहैत गेलखिन ‘हँ यौ भागिन! मोटरे टा नहि, कोठा, सोफा, सभ हैत- -’

तावत ड्राइवर कार स्टार्ट कऽ देलकै। इंजिनक घरघरी सॅ आओर  साकांक्ष आ अचंभित भऽ के घूटर मामक दिस तकलनि। हुनका बुझि पड़लेन जेना लालमामा कोनो तिलस्मी जादूगर होथि आओर ओ स्वयं कोनो राजकुमार। 

साम दाम दंड आओर भेदक समुचित ओ सामयिक प्रयोग करैत, नानाप्रकारक लाभक प्रस्ताव सॅ किछुये काल मे भोलाबाबू तेहेन ने सम्मोहित केलखिन जे धूटरक सरल-तरुण मोन मणिकांचनक वशीभूत भऽ गेलन्हि। जालक मुंह कसाइत चलि गेलैक आओर ओ ओहि जाल मे नीक जेकाँ फंसि गेलाह। 

चारिम दिन, अपन विजयपताका फहरबैत, भोलाबाबू, वऽरक संग, कालीगंज पहुंचि गेलाह। तखनहि सिद्धान्त आओर कुमरम इत्यादि भेलैक आओर प्रातहिं शुभ लग्न मे घूटर झा, राजकन्या यशोमायाक पाणिग्रहण कएल। 

आब घूटर राजाक जामाता भऽ गेलाह। नाम मे उपाघि जुड़ि गेलेन्ह। मुदा ‘ओझा साहेब बाबू घूटर झा’ ई नाम   सभ के बड़ अनसोहाॅंत बुझना जाइ। ततेक अनसोहाँत नहियो बुझि पड़ितै मुदा राजाक खास खवासक नाम सेहो छलैक ‘घूटरा’। तैं अंत मे इयेह तय भेल जे ओझाक राशिके नाम प्रचलित कयेल जाइन्ह। घूटर झा आब ‘ओझा साहेब बाबू भेषधारी झा’ कहबऽ लगलाह। 

सुनि के घूटर के कोनादन लगनि मुदा जेना जेना समय बीतैत गेलैक तेना तेना नव वातावरण, नव उपाघि आओर नव सम्मानक इंद्रघनुषी रंग मे मोन रंगैत चलि गेलैन्ह। रहबाक लेल पृथक भवन, नौकर-चाकर, सवारीक लेल नव मोटरकार। चारू कात सॅ मान आदरक बरसात होइन्ह। प्रतिदिन राजा साहेब अपन मोसाहेब लोकनिक द्वारा कुशलादि पुछबथिन। रानी साहेब अपनहिं हाथें पान लगा के जमाए के पठबथिन। ओझा साहेबक एक इच्छाक पूूर्ति करबाक लेल दसो दिशा मे लोक दौड़ि जाए। 

मुदा सभसॅ प्रगाढ़ एंव मनोहारी रंग चढ़लनि यशोमाया दाइक सहज स्वाभाविक समर्पणक। यशोमाया यौवन मे पयेर रखनहि छलीह। जेना कोनो नव लता समीपस्थ वृक्षक संरक्षण पाबि के गति पबैत अछि आओर किहुये काल मे पसरि के आच्छादित भऽ जाइत अछि तहिना यशोमायाक नव यौवन आओर नव प्रेम मे नित नव स्फुरण होमऽ लगलन्हि तरुण पतिक सानिध्य सॅ। प्रेमक ई पहिल अनुभूति आओर प्रेयसीक सहज समर्पण तेहेन ने बन्हलकनि जे  घूटरक तारुण्य नेहाल भऽ गेलैन्ह। गामक माटिक गंधो बिसरऽ लगलैन्ह। ओझा साहेब कालीगंजक माटि मे रमऽ लगलाह। 

ओम्हर, मघुश्रावणीक बादहिं सॅ भुटकुन झाक कयेक टा पत्र आबि चुकल छलन्हि। पुत्र आओर समधि दूनू के। सभमे इएह अनुरोध जे आब घूटर के विदा कएल जाइन्ह। बेटा के चुमाओन कऽ के विवाहक लेल पठबितथि से मनोरथ तऽ पूरा नहिये भऽ सकलन्हि, कम सॅ कम कोजागराक चुमाओन  करितथि से सिहन्ता छलनि वऽरक माए केॅ। पत्रक आशय बुझि के इयेह तय भेल जे यात्राक दिन धूटर विदा भऽ के गाम जाथि। कोजागराक भार ओत्तहि जाइन्ह जाहि सॅ गामोक लोक कालीगंज राज्यक वैभव आओर साँठ राज देखए। 

बड़ उत्साह सॅ वऽरक विदाक ओरिआओन भेल। दुर्गेश्वरी ततेक वस्तुजात देलखिन जे लोक देखितहि रहि गेल। परिवारक स्त्रीगण सभक लेल उत्तम व्यवहार पठौलखिन। पृथक सॅ समधिनक लेल दू पेटी भरि कपड़ा लत्ता, गहना-गुरिया देलखिन। 

मुदा घूटर के, ने विदाक समाचारे सॅ तेहेन प्रसन्नता भेलन्हि आ ने वस्तुजाते देखि के कोनो कौतूहल। विदा होइक अर्थ छल गाम मे माएक सामना केनाइ। आओर ओ अपन माएक उग्र स्वभाव सॅ पूर्ण परिचित छलाह। गाम पहुचलाक बाद ओ केहेन प्रतिक्रिया देखौथिन, तै विषय मे भांति भांतिक आशंका मोन मे होमऽ लगलन्हि। संगहि, प्रिया-विछोहक कल्पनामात्र सॅ मोन कातर भऽ उठलन्हि। एखनहि तऽ सूखल धरती पर बरखाक पहिल फोहार पड़ल छल, एखनहि तऽ माटि मे सॅ सोन्ह-सोन्ह गन्ध बहराके चारू कात पसरल छल आओर एखनहि ई तुषारापात! मुदा करितथि की? 

विदा सॅ पहिलुका राति मे, जखन यशोमाया हाथ मे एकटा रुमाल पकड़ा देलखिन आओर कॅपैत कंठ सॅ एतबहि कहि सकलखिन ‘हे, मोन राखब, हमरा बिसरब जुनि’ तऽ किछु उत्तर नहि फुरलन्हि। गऽर अवरुद्ध भऽ गेलेन्ह। स्त्रीक हाथ गसिया के धऽ लेलन्हि। 

विदा कालक करुण गीत, आओर अर्थपूर्ण विधि सभक संपादन करैत करैत घूटरक मोन ततेक आकुल भऽ गेल छलन्हि जे ओ अनमनस्क जेकाॅं सभ निर्देशक पालन करैत चल गेल छलाह। मोटरकार काफी दूर निकलि गेलैेक तखनि लेना भक्क टुटलनि। हँ, ई धरि मोन पड़लनि ले पत्नीक हाथक कोमल स्पर्श पीठ पर पड़ल छलनि आओर उपस्थित स्त्रीगण मे सॅ केओ बाजल छलीह

‘यौ ओझा साहेब, ई सिनुरक थाप हमर यशोमाया दाइक हाथक थिक, जखनि जखनि अइ पर नजरि पड़त तऽ ओ अहाँक सोझाॅं मे ठाढ़ भऽ जेतीह। बिसरबनि जुनि हमर यशोमाया दाइ के’ 

आओर पीठ पर ओ तरहथी काँपि उठल छलैक। घूटर आखि बन्न कऽ लेलन्हि। 

जहिना दरवज्जा पर मोटर पहुंचलैक कि देखितहि देखितहि लोकक ठट्ठ लागि गेलैक। भुटकुन झाक बालक राजाक बेटी सॅ विवाह कऽ के घूरल छथि सयेह गामक लोक ले कनेक टा गप्प नहि छलैक। तै पर सॅ इहो हल्ला छलैक जे यदि भुटकुन झा बेटाक ई संबंध केॅं स्वीकार करताह तऽ सोति समाज सॅ बारल जेताह। तैं तमाशा देखै ले आओर बेसी लोक जमा भेल छल। आ भेबो केलैक तहिना। एम्हर भोलाबाबूक संग घूटर दालान पर पयेर रखलनि कि ओम्हर आंगन मे कन्ना-रोहट आरंभ भऽ गेलैक। घूटरक माए चिकरि चिकरि के भोलाक सातो पुरखा के गारि श्राप सॅ दागऽ लगलखिन। 

‘यौ भोला बाबू यौ भोला बाबू! कोन जन्मक बदला लेलौं यौ! - - - आरे बाप रे बाप! डाका दऽ देलहुं हमर घर मे - - सोन सन पूत के लऽ जाके छोटहाक ओइठाम बेचि देलहुं यौ - - - दूनू सार बहिनौ मिलके ई कोन खेल खेलेलहुं- - - बौआक बाबू के तॅ तेहने ज्ञान भेलन्हि जे मुइल स्त्रीक भाइ केर गप्प मे पड़ि के अपन परलोको नष्ट कऽ लेलन्हि- - - आब मुइला पर जलहु के देत? - - - आबथु ने भोला बाबू कनेक हमर सोझाँ मे - - - मुहें झौंसि देबन्हि भकसी मे - - - बाप रे बाप! - - एतेक पाप कतऽ के राखब यौ भोला बाबू- - तेहेने बाप छलाह जे भिनसर मे लोक नामो नइ लइ छन्हि - - - हे दिनकर !- - - देखबन्हि हिनका - - - इत्यादि। 

घूटर के तऽ माए सॅ एहने आशा छलनि मुदा भोलाबाबू के तऽ जेना काठ मारि देलकेन। ओ तऽ बहिनौ के कहला पर अइ काज मे पड़ल छलाह। तैं हतप्रभ भऽ के भुटकुन झा दिस ताकऽ लगलाह। स्त्रीक रंग ढंग देखि भुटकुन पहिनहिं सॅ अप्रतिभ भेल ठाढ़ छलाह मुदा आब परिस्थिति के विशेष बिगड़ैत देखि आगाँ बढ़ि के सारके हाथ पकड़ि के बैसौलखिन आओर कहऽ लगलखिन ‘हिनकर स्वभाव तऽ अहाॅं जनिते छी - - तै पर सॅ मनोरथ छलनि जे धरमपुरक सदानन्द ठाकुरक कन्या मे करितथि, से जे नहि भऽ सकलन्हि तेकरे - - -’।

घूटरक माए दोरुखा लग सॅ सुनैत छलखीन। बिच्चहि मे लोकि लेलखिन। कहलखिन 

‘से एखनि की भेलैए ! हम, यदि एहि अगहन मे सदानन्द ठाकुरक बेटी के, पुतोहु बना के नहि देखा दी तऽ हमर नाम ‘कामाख्या’ नहि ! घूटरक बाबू रुपैया गनि गनि के चटैत रहथु !

तखनहि, घुटर आँगन मे जाके माए के गोड़ लगलखिन। आँखि मे काजर आओर माथ पर घुनेस-पाग देखैत देरी चीत्कार कऽ उठलीह कामाख्या। घुनेस नोचि के फेकि देलखिन आओर मूर्छित भऽ के खसि पड़लीह। दाँती लागि गेलन्हि। घूटर दौड़ि के जल अनलन्हि। जऽलक छीटा दऽ के होस मे अनलखिन। होस मे अबिते देरी फेर वयेह प्रलाप आरंभ भऽ गेलन्हि। 

‘बेटा हम्मर थीक ! नौ मास पेट मे हम रखलियैक ए, हमर बात नहि काटत। किन्नहु नहि काटत हमर बात। - - - ई विवाह कोनो विवाह थिकैक ! हम नऽ- -हि मानैत छी एहेन चोरौआ विवाह ! आ ने हम ओइ छोटहाक बेटी के घऽर करब। हम अप्पन घूटर बाबूक विवाह करबनि अही अगहन मे। लोको देखतैक जे केहेन काज हेतैक। तेहेन साॅंखड़ साॅंठब जेहेन केओ ने सठने हैत - - -  की यौ बाबू ? - - - माएक मनोरथ पूर करब ने ? - - - बाजू ! - - - बौआ!- - माएक मोनक तोख राखब कि ने ? - - - वचन दियऽ हमरा- - - सप्पत खाउ !!- - । 

कहैत कहैत फेर उन्माद आबि गेलन्हि। ओ घूटरक बाँहि पकड़ि के जोर जोर सॅ झकझोरऽ लगलखिन। माए के एहेन विक्षिप्तावस्था मे देखि के घूटर डरि गेलाह। लपकि के माए के उठौलन्हि आओर पिता के सोर पाड़ऽ लगलाह ‘बाबू यौ ! देखियौ ने - - दाइ तऽ कोनादन करै छथि- - दाइ - - दाइ!- - दाइ यै!’ 

बेटाक मुंह सॅ अपन संबोधन सुनितहि कामाख्या आंखि खोलि देलखिन आओर बेटाक गऽर धऽ के हिचुकि हिचुकि के कान लगलीह। कनेक कालक बाद जखनि मोन कनेक हल्लुक भेलैन्ह तऽ उठलीह आओर सभ सॅ पहिल काज ई केलेन्ह ले जतेक भार-दउर वस्तुजात कालीगंज सॅ आयेल छलैक, सभटा उठवाके पोखरि मे फेकवा देलखिन। जखनि ई विवाहे मान्य नहि छलन्हि तखन वस्तुजातक कथे कान। भुटकुन झा किच्छु नहि बाजि सकलाह। 

तेसर दिन जखनि कोजागराक भार आएल तऽ एकबेर फेर हो-हल्ला मचल। मुदा अंत मे एक्कैसो बोरा मखान पोखरि मे फेकवाइये के दम लेलन्हि कामाख्या। किछु काल धरि तऽ मखानक पथार लागल रहल जल-सतह पर। पाछाँ गामक लोक सभ काढ़ि-काढ़ि के लऽ गेल। सुखा-सुखा के रखलक आओर मोन भरि खेलक। मुदा भुटकुन झाक आंगन मे ने चुमाओन भेलनि ने कोनो गीत-नाद। कालीगंजक नामो लेनाइ वर्जित भऽ गेल। 

मुदा घूटर अपन मोन के की करथु। मोने नहि मानल जाइन्ह। घुरि घुरि के मोन अटकि जाइन्ह यशोमाया पर। प्रबल इच्छा होनि पत्र लिखबाक। ताहू सॅ प्रबलतर इच्छा होनि उड़ि के पहुंचि जाइक। मुदा पाँखि छलनि कहाँ ? जेहो छलनि से माए कुतरि के राखि देने छलखीन। माए पर कखनहु के बड़ रोष होइन्ह। 

‘सभ के अपन मनोरथक पड़ल छैक। हमर मोन पर की बीति रहल अछि तै पर केओ कियेक विचार करत। बाबू के टाकाक लोभ छलन्हि से भरि डाँड़ कसिये लेलन्हि। माए के जातिक अभिलाषा छन्हि से पूरा कइये के रहतीह। मुदा हमर की इच्छा आछि, हमर की अभिलाषा अछि तेकर कोनो परवाहि नहि छनि केकरहु!’

सोचैत सोचैत फेर कखनहु संतानजनित कर्तव्यबोध सेहो होइन्ह।

‘ई शरीर न माइये बापक देल थीक, कतेक कष्ट काटि के पोसने हेतीह दाइ हमरा। तैं हुनके पहिल अधिकार छनि, जेना कहथि-- जेना राखथि- - हमरा ग्राह्य हेबाक चाही।’

अइ तरहें, त्याग आओर अनुरागक उहापोह मे पड़ल छलाह घूटर। मोनक द्विविधाक कोनो समुचित समाधान नहि सूझाइन्ह। समय बीतैत रहल। देखैत देखैत दू मास बीत गेल। 

आइ दू दिन सॅ भुटकुन बाबूक आंगन मे बेश चहल पहल छल। कल्हुका साॅझ मे घूटरक विवाहक लेल लाबो भुजा गेलेन्ह। आइ अपरान्ह मे विवाह छलन्हि। बगलेक गाम, धरमपुर मे सदानन्द ठाकुरक ओइठाम बरियाती जेतैक। जातिक श्रेणी मे कनेआँ छठम पड़ैत छैक तै सॅ की ? बरक माए केर उत्साह देखबाक योग्य छलन्हि। बड़ मनोरथ सॅ साँकड़ सठने छलीह। डेढ़ पट्टा चीनी, मऽन भरि सुपारी आओर खास बनारस सॅ मॅगाओल लत्ती बला पटोर। कत्तहु कोनो कसरि नहि छलन्हि। 

कसरि छलन्हि एक्केठाम, बऽरक मोन मे बड़ कसरि छलन्हि। जेना जेना ढोल तासाक तड़तड़ी बढ़ल जाइक तहिना तहिना घूटरक मोन बैसल जाइन्ह। ओ, एकटक, घरक धरैन पर नअरि गड़ौने  ओछान पर पड़ल छलाह। मोन कत्तहु सुदूर मे भटकि रहल छलन्हि। दूनू हाथ पसारि के केओ बजा रहल छलन्हि। डबडबाएल आंखि सॅ केओ उपालंभ दऽ रहल छलन्हि जे ‘एखनहि बिसरि गेलहुँ ?’ एक्के ध्वनि माथ मे टनक जेकाँ घूरि घूरि के बजैत छलन्हि ‘हमर कोन दोष ? हमर कोन दोष ?’

बुझि पड़लन्हि जे माथ लग केओ ठाढ़ अछि। घुरि के तकलन्हि तऽ पिता छलखिन, 

‘उठू बाउ, धरमपुर सॅ आज्ञा लैले आएल छथि। दलान पर चलू’। 

तंद्रा तऽ टुटि गेलन्हि मुदा अनमनस्के जेकाँ पिता सॅ पुछलखिन। 

‘आज्ञा ? आब कथीक आज्ञा देबेन्हि हम ? आओर हमर आज्ञाक कोन काज ?’

पुत्रक मनोदशा पिता सॅ नुकाएल नहि छलन्हि। तइयो घूटर के बुझबैत, कहऽ लगलखिन। 

‘अहींक आज्ञा तऽ सर्वोपरि छैक। ई बड़ महत्वपूर्ण क्षण होइत छैक जीवनक। विवाहक विधि आरंभ करबा सॅ पूर्ण वर सॅ अंतिम आश्वासन लेल जाइत छनि जे ओ एहि कन्याक पाणिग्रहणक लेल प्रस्तुत छथि की नहि। स्वतंत्र रुप सॅ, ओहि कन्याक संग जीवनपर्यन्त निर्वाह लेल तैयार छथि, से वचन वऽरक मुंह सॅ लै केर बादहि कन्याक पिता आश्वस्त होइत छथि। तैं जावत अहाॅं अनुमति नहि देवन्हि, ओतुक्का वैवाहिक कार्यक्रम आरंभ नहि हेतैक।’ 

घूटरक माथ धम्म धम्म कऽ उठलन्हि । मोन पड़लनि जे अइ सॅ पहिनहुं आज्ञा- अनुमति देने छलखिन ओ। किछुये मास पहिने केकरो पाणिग्रहण केने छलखिन। जखन ओइ आज्ञाक कोनो महत्व नहि रहलैक तखन फेर ई नव आज्ञा कथी ले, आओर कोन विश्वास पर ?

घूटर अनमनस्के जेकाँ पिताक पाछाँ लागि गेलाह। दालान लऽग पहुंचि के भुटकुन बाबू के मोन पड़लनि जे घूटरक माथ पर ने पाग छनि ने देह पर तौनी। ओ घूटर के कहलखिन

‘जाह ! पाग तौनी कहाँ लेलहुं, जाउ पेटी मे सॅ निकालि के पहिर लियऽ आओर झट दऽ दलान पर आबि जाउ। कन्यागत के बड़ अगुताइ छनि’।

घूटर अपन कोठली मे घूरि एलाह आओर चौकी तर सॅ पेटी घीचि के खोललन्हि। खोलैत देरी मोन एकदम सॅ बेकाबू भऽ गेलैन्ह। उपरहि मे राखल धबधब उज्जर दोपटा पर यशोमायाक तरहथीक सिनुरक थाप आँकल छलनि। ई थाप दइत काल, जे यशोमायाक हाथ काँपि उठल छलनि, से धक्क सॅ मोन पड़ि गेलन्हि। बुझना गेलन्हि जेना सम्मुख मे साक्षात् यशोमाया ठाढ़ छथि। सजल नेत्र सॅ कहैत छथिन।

‘हे मोन राखब ! हमरा बिसरब जुनि’ 

घूटर आगाँ किच्छु नहि सोचि सकलाह। दोपटा उठा के ओढ़ि लेलन्हि आओर दन्न सॅ घर सॅ बहरा गेलाह। सोझँहिं दालान पर आबि के स्थिर आओर दृढ़ स्वर मे एतबहि कहलखिन 

 ‘हम आज्ञा नहि दऽ सकब। अपने सुनल ? हम आज्ञा नहि दैत छी - - किन्नहु नहि देब !’

दू घंटाक बाद, घूटर जखनि कालीगंज दिस जाइ वला रेलगाड़ी मे बैसलाह, तखनहुं दोपटा ओढ़नहि छलाह।हमरा बिसरब जुनि

‘राजा होथि कि महाराजा, तेरह तेरह बरखक कन्या रखताह त लोक कहबे करतन्हि’

केओ कुटुम्बिनी बाजल छलीह से रानी दुर्गेश्वरी देवीक कान मे पड़ि गेल छलन्हि।

बात त सत्ये छलैक। यशोमायाक धुआ यद्यपि छोेट छलन्हि मुदा बारहम पुरि के तेरहम चढ़ि चुकल छलनि से कनेक टा बात नहि छलैक। मुदा रानी साहेब की करथु। कत्तहु फेकि कोना के दितथिन। जतेक वऽर ठीक होइत छलनि सभक एक्कहि मांग। ‘केदलीक तालुका लिख दियऽ’ अही एक मांग पर कथा स्थगित भऽ के टुटि जाइत छलन्हि।

‘कालीगंज रेयासत’ कनेक टा नहि छलैक। बावन धार एवं बावन पहाड़क राज्य कहबैत छलैक। मुदा केदलीक तालुका अपन उर्वर भूमिक कारणे रेयासतक नाक कहबैत छल। सभ सॅ बेशी राजस्व अही खंड से अबैत छलैक। तैं केदलीक इलाका केँ कन्यादानक मूल्य मे देनाइ राजा के कदापि मंजूर नहि छलनि।

एक से एक कथाक सूत्र अबन्हि। उच्च श्रोत्रिय, ताहिपर सॅ सुंदर प्रथम वर सभ। मुदा जहिना कथा उपस्थित कयेल जाइ कि घूरि फिर के एक्कहि ‘केदलीक’ मांग कऽ बैसथि बऽरक बाप।

कालीगंजक ब्राह्मण राजवंश श्रोत्रिय नहि छल तैं श्रोत्रिय सॅ संबंध हुनका लोकनि के बड़ श्रेयस्कर बुझाइन्ह। ऐहेन नहि छलैक जे श्रोेत्रिय लोकनि कालीगंजक संबंध से साफे कतराति होथि। कतेक उच्च श्रेणीक लोक भीतरहिं भीतर ऐहेन संबंध बनबैक लेल लालायित रहैत छलाह। कारण छल जे हिनका लोकनि के प्रचुर धन संपदा तऽ भेटबे करन्हि, संगहि विशेष आदर सम्मान सेहो प्राप्त होइन्ह। तै श्रोत्रियेतर परिवार सॅ संबंध स्थापनक फलस्वरुप होइवला सामाजिक भर्त्सना एंव निष्कासनहु के इ लोकनि सहि जाथि। हॅं एकर भरपाइ-स्वरुप किछु मोट टाका आओर मुंहमांगल भू-संपदाक लोभ हिनका लोकनि के ग्रसित कइये लन्हि। आ से भेटबो करन्हि।

मुदा ‘केदली’ देनाइ साफ अस्वीकार छलनि राजा केॅं। अंत मे, बड़ अनुसन्धानक बाद एकठाम कथा स्थिर भेलन्हि। अठारह वरखक प्रथमवर, द्वितीय श्रेणीक बड़का सोति। केदली तऽ बाॅंचि गेलनि मुदा व्यवस्थाक नाम पर पूरे एगारह हजार टाका देमऽ पड़लनि। ताहू पर शर्त ई, जे टाकाक प्रसंग गोपनीय रखैत, वऽर केॅ एहितरहेॅं लऽ जाउ जाहि सॅ बुझना जाइक जे बऽरक अपहरण भेल हो। कियेक तऽ अपहरणक कथाक प्रसार भऽ गेने सामाजिक बहिष्कार सॅ बाॅंचि जेताह, ऐहेन विश्वास छलन्हि वऽरक बाप के।

कालीगंजक लोक के सभटा मान्य करहि पड़लनि। राजकन्याक बढ़ति वयेसक दुआरे ओ लोकनि कन्यादानक लेल ततेक आतुर छलाह जे बेसी मीन-मेख निकालबाक औकाति नहि छलन्हि। ताहि पर सॅ, ई कथा आन सभ तरहेॅं उपयुक्त छलन्हि।

बैसाख शुरु होइ सॅ एक पख पहिनहि भुटकुन झा अपन बालकक अपहरणक संपूर्ण योजना लिख के पठा देलखिन। ‘आगामी शुक्ल दशमी के प्रातहि बौआ अपन बहिनक सासुरक लेल विदा हेताह। संगमे मात्रा एकटा खवास रहतन्हि। ई अवसर सभ तरहेॅं ठीक बुझना जाइत अछि तैं सरकार के लिख रहल छी जे एहेन उपाय कयेल जाये जे बौआक कठमान ‘भोला बाबू’ ओहि दिन प्रस्तुत रहथि। बाटहि सॅ लऽ जाथिन से नीक। भोला बाबू यदि कहथिन जे ‘चलू, दड़िभंगा धुरा दैत छी’ तॅऽ कोनो तरहक आपत्ति नहिये करताह। शेष अपने स्वयं सर्व समर्थ छी- इत्यादि।’

 योजनाक अनुरुपे सभ कार्य भेलैक। वऽरक कटमाम श्री भोलानाथ झा जे कालीगंजक सर्कल मनेजर छलााह, आओर अइ कथा मे मुख्य घटक सेहो छलाह, नियत समय पर राजक मोटरकार लेने ओइ स्थान पर पहुचि गेलाह, जै बाटें वऽर के आयेब निश्चित छलनि। एकटा गाछक तऽर मे कार रोकि के भागिनक प्रतीक्षा करऽ लगलाह। करीब पौन धंटाक बाद दूटा व्यक्ति अबैत दृष्टिगोचर भेलखिन। एक गोटा घोड़ी पर बैसल चल अबैत छलाह आओर दोसर युवक जे संभवतः हुनकर नौकर छल से पाछाॅ पाछाॅ माथ पर पेटी उठौने अबैत छल। लऽग अबै पर भोला बाबू चीन्हि गेलखिन। वऽर आओर हुनक खवास छल। कार से उतरि के सोर पाड़लखिन

‘औजी, घूटर बौआ छी यौ’?

‘लालममा! अहाॅं एतऽ ?’ कहैत लऽग आबि के धूटर, माम के गोड़ लगलखिन। आओर किहु पुछितथिन मुदा हुनकर घ्यान तऽ चमचमाइत मोटरकार दिस छलन्हि। पुछलखिन

‘ई हवागाड़ी थिकैक ने! अहाॅक थिक लालममा ?’

लालमामा सोचितहि छलाह जे षड़यंत्रक सूत्रपात कतऽ सॅ करी से अनायासे भऽ गेलन्हि। सूत्र के मतबूती सॅ पकड़ैत बजलाह

‘हमरे थीक, सैह बुझू- - - घुरब मोटरकार पर ?’

घूटर कुदि के बजलाह ‘कनेके घुरा दियऽ, कोम्हर सॅ बेसबैक ?

- - चलू ने!’

भागिनक अगुताइ देखि के भोला बाबू जाल फेकलन्हि ‘कनेके कियेक घुरब ? चलू नीक जेकाँ घुरा दैत छी। हमर संग दड़िभंगा चलू। मोटरकारो पर चढ़ल भऽ जायेत आओर दड़िभंगो घूरि लेब’

एक्कहि संग दू दू टा आकर्षक प्रस्ताव सॅ पहिने तऽ घूटर बड़ प्रसन्न भेलाह मुदा लगले मोन पड़लनि जे हुनका बहिनक ओतऽ जेबाक छलनि। उदास भऽ के माम के कहलखिन

‘मुदा हम त लोहना जेबाक लेल निकलल छलहुँ- - सीता बहिन ओइठाम - -’

‘से कोन भारी बात छैक, हम साँझ धरि अहाँके लोहने पहुँचा देब। हमहू सीता दाइ सॅ भेंट कऽ लेबेन्ह। रौ मुनमा- - तो घोड़ी लऽ के लोहना चलि जो, सीता दाइ के कहभून जे लालममाक लेल माछ बना के रखतीह, हम साँझो साँझ तक पहुचि जेबन्हि घूटरक संग’

आब घूटर जाल मे पैसि चुकल छलाह। झटपट गुनमा के आवश्यक निर्देश दऽ के कार के पिछुलका सीट पर भोला बाबूक बगल मे बैसि गेलाह। मोन आनंद सॅ ओतप्रोत छलनि। एक्के संग कैकटा प्रश्न पूछऽ लगलखिन

‘ई ठीके हवे सॅ चलैत छैक ? लगाम तगाम किच्छु नहि ? चकाचक केहेन करैत छैक!’

हॅंसि के भोलाबाबू षड़यंत्रक अगिला चरणक सूत्रपात केलन्हि। कहलखिन ‘अहू सॅ बेशी चकाचक करैत मोटरकार होयत अहाँके। अहू सॅ बढ़ियाँ, बस, अप्पन लालममा पर विश्वास राखऽ पड़त।’

लालमामाक मुह ताकऽ लगलाह घूटर। कान पर जेना विश्वासे नहि भेलन्हि। लालमामा कहैत गेलखिन ‘हँ यौ भागिन! मोटरे टा नहि, कोठा, सोफा, सभ हैत- -’

तावत ड्राइवर कार स्टार्ट कऽ देलकै। इंजिनक घरघरी सॅ आओर साकांक्ष आ अचंभित भऽ के घूटर मामक दिस तकलनि। हुनका बुझि पड़लेन जेना लालमामा कोनो तिलस्मी जादूगर होथि आओर ओ स्वयं कोनो राजकुमार।

 साम दाम दंड आओर भेदक समुचित ओ सामयिक प्रयोग करैत, नानाप्रकारक लाभक प्रस्ताव सॅ किछुये काल मे भोलाबाबू तेहेन ने सम्मोहित केलखिन जे धूटरक सरल-तरुण मोन मणिकांचनक वशीभूत भऽ गेलन्हि। जालक मुंह कसाइत चलि गेलैक आओर ओ ओहि जाल मे नीक जेकाँ फंसि गेलाह।

 चारिम दिन, अपन विजयपताका फहरबैत, भोलाबाबू, वऽरक संग, कालीगंज पहुंचि गेलाह। तखनहि सिद्धान्त आओर कुमरम इत्यादि भेलैक आओर प्रातहिं शुभ लग्न मे घूटर झा, राजकन्या यशोमायाक पाणिग्रहण कएल।

आब घूटर राजाक जामाता भऽ गेलाह। नाम मे उपाघि जुड़ि गेलेन्ह। मुदा ‘ओझा साहेब बाबू घूटर झा’ ई नाम सभ के बड़ अनसोहाॅंत बुझना जाइ। ततेक अनसोहाँत नहियो बुझि पड़ितै मुदा राजाक खास खवासक नाम सेहो छलैक ‘घूटरा’। तैं अंत मे इयेह तय भेल जे ओझाक राशिके नाम प्रचलित कयेल जाइन्ह। घूटर झा आब ‘ओझा साहेब बाबू भेषधारी झा’ कहबऽ लगलाह।

सुनि के घूटर के कोनादन लगनि मुदा जेना जेना समय बीतैत गेलैक तेना तेना नव वातावरण, नव उपाघि आओर नव सम्मानक इंद्रघनुषी रंग मे मोन रंगैत चलि गेलैन्ह। रहबाक लेल पृथक भवन, नौकर-चाकर, सवारीक लेल नव मोटरकार। चारू कात सॅ मान आदरक बरसात होइन्ह। प्रतिदिन राजा साहेब अपन मोसाहेब लोकनिक द्वारा कुशलादि पुछबथिन। रानी साहेब अपनहिं हाथें पान लगा के जमाए के पठबथिन। ओझा साहेबक एक इच्छाक पूूर्ति करबाक लेल दसो दिशा मे लोक दौड़ि जाए।

मुदा सभसॅ प्रगाढ़ एंव मनोहारी रंग चढ़लनि यशोमाया दाइक सहज स्वाभाविक समर्पणक। यशोमाया यौवन मे पयेर रखनहि छलीह। जेना कोनो नव लता समीपस्थ वृक्षक संरक्षण पाबि के गति पबैत अछि आओर किहुये काल मे पसरि के आच्छादित भऽ जाइत अछि तहिना यशोमायाक नव यौवन आओर नव प्रेम मे नित नव स्फुरण होमऽ लगलन्हि तरुण पतिक सानिध्य सॅ। प्रेमक ई पहिल अनुभूति आओर प्रेयसीक सहज समर्पण तेहेन ने बन्हलकनि जे घूटरक तारुण्य नेहाल भऽ गेलैन्ह। गामक माटिक गंधो बिसरऽ लगलैन्ह। ओझा साहेब कालीगंजक माटि मे रमऽ लगलाह।

ओम्हर, मघुश्रावणीक बादहिं सॅ भुटकुन झाक कयेक टा पत्र आबि चुकल छलन्हि। पुत्र आओर समधि दूनू के। सभमे इएह अनुरोध जे आब घूटर के विदा कएल जाइन्ह। बेटा के चुमाओन कऽ के विवाहक लेल पठबितथि से मनोरथ तऽ पूरा नहिये भऽ सकलन्हि, कम सॅ कम कोजागराक चुमाओन करितथि से सिहन्ता छलनि वऽरक माए केॅ। पत्रक आशय बुझि के इयेह तय भेल जे यात्राक दिन धूटर विदा भऽ के गाम जाथि। कोजागराक भार ओत्तहि जाइन्ह जाहि सॅ गामोक लोक कालीगंज राज्यक वैभव आओर साँठ राज देखए।

बड़ उत्साह सॅ वऽरक विदाक ओरिआओन भेल। दुर्गेश्वरी ततेक वस्तुजात देलखिन जे लोक देखितहि रहि गेल। परिवारक स्त्रीगण सभक लेल उत्तम व्यवहार पठौलखिन। पृथक सॅ समधिनक लेल दू पेटी भरि कपड़ा लत्ता, गहना-गुरिया देलखिन।

मुदा घूटर के, ने विदाक समाचारे सॅ तेहेन प्रसन्नता भेलन्हि आ ने वस्तुजाते देखि के कोनो कौतूहल। विदा होइक अर्थ छल गाम मे माएक सामना केनाइ। आओर ओ अपन माएक उग्र स्वभाव सॅ पूर्ण परिचित छलाह। गाम पहुचलाक बाद ओ केहेन प्रतिक्रिया देखौथिन, तै विषय मे भांति भांतिक आशंका मोन मे होमऽ लगलन्हि। संगहि, प्रिया-विछोहक कल्पनामात्र सॅ मोन कातर भऽ उठलन्हि। एखनहि तऽ सूखल धरती पर बरखाक पहिल फोहार पड़ल छल, एखनहि तऽ माटि मे सॅ सोन्ह-सोन्ह गन्ध बहराके चारू कात पसरल छल आओर एखनहि ई तुषारापात! मुदा करितथि की?

विदा सॅ पहिलुका राति मे, जखन यशोमाया हाथ मे एकटा रुमाल पकड़ा देलखिन आओर कॅपैत कंठ सॅ एतबहि कहि सकलखिन ‘हे, मोन राखब, हमरा बिसरब जुनि’ तऽ किछु उत्तर नहि फुरलन्हि। गऽर अवरुद्ध भऽ गेलेन्ह। स्त्रीक हाथ गसिया के धऽ लेलन्हि।

विदा कालक करुण गीत, आओर अर्थपूर्ण विधि सभक संपादन करैत करैत घूटरक मोन ततेक आकुल भऽ गेल छलन्हि जे ओ अनमनस्क जेकाॅं सभ निर्देशक पालन करैत चल गेल छलाह। मोटरकार काफी दूर निकलि गेलैेक तखनि लेना भक्क टुटलनि। हँ, ई धरि मोन पड़लनि ले पत्नीक हाथक कोमल स्पर्श पीठ पर पड़ल छलनि आओर उपस्थित स्त्रीगण मे सॅ केओ बाजल छलीह

‘यौ ओझा साहेब, ई सिनुरक थाप हमर यशोमाया दाइक हाथक थिक, जखनि जखनि अइ पर नजरि पड़त तऽ ओ अहाँक सोझाॅं मे ठाढ़ भऽ जेतीह। बिसरबनि जुनि हमर यशोमाया दाइ के’

आओर पीठ पर ओ तरहथी काँपि उठल छलैक। घूटर आखि बन्न कऽ लेलन्हि।

जहिना दरवज्जा पर मोटर पहुंचलैक कि देखितहि देखितहि लोकक ठट्ठ लागि गेलैक। भुटकुन झाक बालक राजाक बेटी सॅ विवाह कऽ के घूरल छथि सयेह गामक लोक ले कनेक टा गप्प नहि छलैक। तै पर सॅ इहो हल्ला छलैक जे यदि भुटकुन झा बेटाक ई संबंध केॅं स्वीकार करताह तऽ सोति समाज सॅ बारल जेताह। तैं तमाशा देखै ले आओर बेसी लोक जमा भेल छल। आ भेबो केलैक तहिना। एम्हर भोलाबाबूक संग घूटर दालान पर पयेर रखलनि कि ओम्हर आंगन मे कन्ना-रोहट आरंभ भऽ गेलैक। घूटरक माए चिकरि चिकरि के भोलाक सातो पुरखा के गारि श्राप सॅ दागऽ लगलखिन।

‘यौ भोला बाबू यौ भोला बाबू! कोन जन्मक बदला लेलौं यौ! - - - आरे बाप रे बाप! डाका दऽ देलहुं हमर घर मे - - सोन सन पूत के लऽ जाके छोटहाक ओइठाम बेचि देलहुं यौ - - - दूनू सार बहिनौ मिलके ई कोन खेल खेलेलहुं- - - बौआक बाबू के तॅ तेहने ज्ञान भेलन्हि जे मुइल स्त्रीक भाइ केर गप्प मे पड़ि के अपन परलोको नष्ट कऽ लेलन्हि- - - आब मुइला पर जलहु के देत? - - - आबथु ने भोला बाबू कनेक हमर सोझाँ मे - - - मुहें झौंसि देबन्हि भकसी मे - - - बाप रे बाप! - - एतेक पाप कतऽ के राखब यौ भोला बाबू- - तेहेने बाप छलाह जे भिनसर मे लोक नामो नइ लइ छन्हि - - - हे दिनकर !- - - देखबन्हि हिनका - - - इत्यादि।

 घूटर के तऽ माए सॅ एहने आशा छलनि मुदा भोलाबाबू के तऽ जेना काठ मारि देलकेन। ओ तऽ बहिनौ के कहला पर अइ काज मे पड़ल छलाह। तैं हतप्रभ भऽ के भुटकुन झा दिस ताकऽ लगलाह। स्त्रीक रंग ढंग देखि भुटकुन पहिनहिं सॅ अप्रतिभ भेल ठाढ़ छलाह मुदा आब परिस्थिति के विशेष बिगड़ैत देखि आगाँ बढ़ि के सारके हाथ पकड़ि के बैसौलखिन आओर कहऽ लगलखिन ‘हिनकर स्वभाव तऽ अहाॅं जनिते छी - - तै पर सॅ मनोरथ छलनि जे धरमपुरक सदानन्द ठाकुरक कन्या मे करितथि, से जे नहि भऽ सकलन्हि तेकरे - - -’।

घूटरक माए दोरुखा लग सॅ सुनैत छलखीन। बिच्चहि मे लोकि लेलखिन। कहलखिन

‘से एखनि की भेलैए ! हम, यदि एहि अगहन मे सदानन्द ठाकुरक बेटी के, पुतोहु बना के नहि देखा दी तऽ हमर नाम ‘कामाख्या’ नहि ! घूटरक बाबू रुपैया गनि गनि के चटैत रहथु !

 तखनहि, घुटर आँगन मे जाके माए के गोड़ लगलखिन। आँखि मे काजर आओर माथ पर घुनेस-पाग देखैत देरी चीत्कार कऽ उठलीह कामाख्या। घुनेस नोचि के फेकि देलखिन आओर मूर्छित भऽ के खसि पड़लीह। दाँती लागि गेलन्हि। घूटर दौड़ि के जल अनलन्हि। जऽलक छीटा दऽ के होस मे अनलखिन। होस मे अबिते देरी फेर वयेह प्रलाप आरंभ भऽ गेलन्हि।

 ‘बेटा हम्मर थीक ! नौ मास पेट मे हम रखलियैक ए, हमर बात नहि काटत। किन्नहु नहि काटत हमर बात। - - - ई विवाह कोनो विवाह थिकैक ! हम नऽ- -हि मानैत छी एहेन चोरौआ विवाह ! आ ने हम ओइ छोटहाक बेटी के घऽर करब। हम अप्पन घूटर बाबूक विवाह करबनि अही अगहन मे। लोको देखतैक जे केहेन काज हेतैक। तेहेन साॅंखड़ साॅंठब जेहेन केओ ने सठने हैत - - - की यौ बाबू ? - - - माएक मनोरथ पूर करब ने ? - - - बाजू ! - - - बौआ!- - माएक मोनक तोख राखब कि ने ? - - - वचन दियऽ हमरा- - - सप्पत खाउ !!- - ।

 कहैत कहैत फेर उन्माद आबि गेलन्हि। ओ घूटरक बाँहि पकड़ि के जोर जोर सॅ झकझोरऽ लगलखिन। माए के एहेन विक्षिप्तावस्था मे देखि के घूटर डरि गेलाह। लपकि के माए के उठौलन्हि आओर पिता के सोर पाड़ऽ लगलाह ‘बाबू यौ ! देखियौ ने - - दाइ तऽ कोनादन करै छथि- - दाइ - - दाइ!- - दाइ यै!’

 बेटाक मुंह सॅ अपन संबोधन सुनितहि कामाख्या आंखि खोलि देलखिन आओर बेटाक गऽर धऽ के हिचुकि हिचुकि के कान लगलीह। कनेक कालक बाद जखनि मोन कनेक हल्लुक भेलैन्ह तऽ उठलीह आओर सभ सॅ पहिल काज ई केलेन्ह ले जतेक भार-दउर वस्तुजात कालीगंज सॅ आयेल छलैक, सभटा उठवाके पोखरि मे फेकवा देलखिन। जखनि ई विवाहे मान्य नहि छलन्हि तखन वस्तुजातक कथे कान। भुटकुन झा किच्छु नहि बाजि सकलाह।

 तेसर दिन जखनि कोजागराक भार आएल तऽ एकबेर फेर हो-हल्ला मचल। मुदा अंत मे एक्कैसो बोरा मखान पोखरि मे फेकवाइये के दम लेलन्हि कामाख्या। किछु काल धरि तऽ मखानक पथार लागल रहल जल-सतह पर। पाछाँ गामक लोक सभ काढ़ि-काढ़ि के लऽ गेल। सुखा-सुखा के रखलक आओर मोन भरि खेलक। मुदा भुटकुन झाक आंगन मे ने चुमाओन भेलनि ने कोनो गीत-नाद। कालीगंजक नामो लेनाइ वर्जित भऽ गेल।

 मुदा घूटर अपन मोन के की करथु। मोने नहि मानल जाइन्ह। घुरि घुरि के मोन अटकि जाइन्ह यशोमाया पर। प्रबल इच्छा होनि पत्र लिखबाक। ताहू सॅ प्रबलतर इच्छा होनि उड़ि के पहुंचि जाइक। मुदा पाँखि छलनि कहाँ ? जेहो छलनि से माए कुतरि के राखि देने छलखीन। माए पर कखनहु के बड़ रोष होइन्ह।

 ‘सभ के अपन मनोरथक पड़ल छैक। हमर मोन पर की बीति रहल अछि तै पर केओ कियेक विचार करत। बाबू के टाकाक लोभ छलन्हि से भरि डाँड़ कसिये लेलन्हि। माए के जातिक अभिलाषा छन्हि से पूरा कइये के रहतीह। मुदा हमर की इच्छा आछि, हमर की अभिलाषा अछि तेकर कोनो परवाहि नहि छनि केकरहु!’

 सोचैत सोचैत फेर कखनहु संतानजनित कर्तव्यबोध सेहो होइन्ह।

‘ई शरीर न माइये बापक देल थीक, कतेक कष्ट काटि के पोसने हेतीह दाइ हमरा। तैं हुनके पहिल अधिकार छनि, जेना कहथि-- जेना राखथि- - हमरा ग्राह्य हेबाक चाही।’

 अइ तरहें, त्याग आओर अनुरागक उहापोह मे पड़ल छलाह घूटर। मोनक द्विविधाक कोनो समुचित समाधान नहि सूझाइन्ह। समय बीतैत रहल। देखैत देखैत दू मास बीत गेल।

 आइ दू दिन सॅ भुटकुन बाबूक आंगन मे बेश चहल पहल छल। कल्हुका साॅझ मे घूटरक विवाहक लेल लाबो भुजा गेलेन्ह। आइ अपरान्ह मे विवाह छलन्हि। बगलेक गाम, धरमपुर मे सदानन्द ठाकुरक ओइठाम बरियाती जेतैक। जातिक श्रेणी मे कनेआँ छठम पड़ैत छैक तै सॅ की ? बरक माए केर उत्साह देखबाक योग्य छलन्हि। बड़ मनोरथ सॅ साँकड़ सठने छलीह। डेढ़ पट्टा चीनी, मऽन भरि सुपारी आओर खास बनारस सॅ मॅगाओल लत्ती बला पटोर। कत्तहु कोनो कसरि नहि छलन्हि।

 कसरि छलन्हि एक्केठाम, बऽरक मोन मे बड़ कसरि छलन्हि। जेना जेना ढोल तासाक तड़तड़ी बढ़ल जाइक तहिना तहिना घूटरक मोन बैसल जाइन्ह। ओ, एकटक, घरक धरैन पर नअरि गड़ौने ओछान पर पड़ल छलाह। मोन कत्तहु सुदूर मे भटकि रहल छलन्हि। दूनू हाथ पसारि के केओ बजा रहल छलन्हि। डबडबाएल आंखि सॅ केओ उपालंभ दऽ रहल छलन्हि जे ‘एखनहि बिसरि गेलहुँ ?’ एक्के ध्वनि माथ मे टनक जेकाँ घूरि घूरि के बजैत छलन्हि ‘हमर कोन दोष ? हमर कोन दोष ?’

बुझि पड़लन्हि जे माथ लग केओ ठाढ़ अछि। घुरि के तकलन्हि तऽ पिता छलखिन,

‘उठू बाउ, धरमपुर सॅ आज्ञा लैले आएल छथि। दलान पर चलू’।

तंद्रा तऽ टुटि गेलन्हि मुदा अनमनस्के जेकाँ पिता सॅ पुछलखिन।

‘आज्ञा ? आब कथीक आज्ञा देबेन्हि हम ? आओर हमर आज्ञाक कोन काज ?’

पुत्रक मनोदशा पिता सॅ नुकाएल नहि छलन्हि। तइयो घूटर के बुझबैत, कहऽ लगलखिन।

 ‘अहींक आज्ञा तऽ सर्वोपरि छैक। ई बड़ महत्वपूर्ण क्षण होइत छैक जीवनक। विवाहक विधि आरंभ करबा सॅ पूर्ण वर सॅ अंतिम आश्वासन लेल जाइत छनि जे ओ एहि कन्याक पाणिग्रहणक लेल प्रस्तुत छथि की नहि। स्वतंत्र रुप सॅ, ओहि कन्याक संग जीवनपर्यन्त निर्वाह लेल तैयार छथि, से वचन वऽरक मुंह सॅ लै केर बादहि कन्याक पिता आश्वस्त होइत छथि। तैं जावत अहाॅं अनुमति नहि देवन्हि, ओतुक्का वैवाहिक कार्यक्रम आरंभ नहि हेतैक।’

 घूटरक माथ धम्म धम्म कऽ उठलन्हि । मोन पड़लनि जे अइ सॅ पहिनहुं आज्ञा- अनुमति देने छलखिन ओ। किछुये मास पहिने केकरो पाणिग्रहण केने छलखिन। जखन ओइ आज्ञाक कोनो महत्व नहि रहलैक तखन फेर ई नव आज्ञा कथी ले, आओर कोन विश्वास पर ?

 घूटर अनमनस्के जेकाँ पिताक पाछाँ लागि गेलाह। दालान लऽग पहुंचि के भुटकुन बाबू के मोन पड़लनि जे घूटरक माथ पर ने पाग छनि ने देह पर तौनी। ओ घूटर के कहलखिन

‘जाह ! पाग तौनी कहाँ लेलहुं, जाउ पेटी मे सॅ निकालि के पहिर लियऽ आओर झट दऽ दलान पर आबि जाउ। कन्यागत के बड़ अगुताइ छनि’।

 घूटर अपन कोठली मे घूरि एलाह आओर चौकी तर सॅ पेटी घीचि के खोललन्हि। खोलैत देरी मोन एकदम सॅ बेकाबू भऽ गेलैन्ह। उपरहि मे राखल धबधब उज्जर दोपटा पर यशोमायाक तरहथीक सिनुरक थाप आँकल छलनि। ई थाप दइत काल, जे यशोमायाक हाथ काँपि उठल छलनि, से धक्क सॅ मोन पड़ि गेलन्हि। बुझना गेलन्हि जेना सम्मुख मे साक्षात् यशोमाया ठाढ़ छथि। सजल नेत्र सॅ कहैत छथिन।

 ‘हे मोन राखब ! हमरा बिसरब जुनि’

 घूटर आगाँ किच्छु नहि सोचि सकलाह। दोपटा उठा के ओढ़ि लेलन्हि आओर दन्न सॅ घर सॅ बहरा गेलाह। सोझँहिं दालान पर आबि के स्थिर आओर दृढ़ स्वर मे एतबहि कहलखिन

 ‘हम आज्ञा नहि दऽ सकब। अपने सुनल ? हम आज्ञा नहि दैत छी - - किन्नहु नहि देब !’

 दू घंटाक बाद, घूटर जखनि कालीगंज दिस जाइ वला रेलगाड़ी मे बैसलाह, तखनहुं दोपटा ओढ़नहि छलाह।

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